"सुप्रीम कोर्ट की आशा और विश्वास नहीं रख सका": मद्रास हाईकोर्ट ने एक मामले पर फैसला करने में देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी

Update: 2021-11-08 05:53 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने इस सप्ताह सुप्रीम कोर्ट से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी द्वारा दायर एक रिट याचिका पर फैसला करने के लिए छह साल से अधिक समय लेने के लिए माफ़ी मांगी, जिस पर आर्थिक अपराध में शामिल एक महिला से 3 करोड़ रुपये निकालने का आरोप लगाया गया है।

कोर्ट ने देखा कि उच्च न्यायालय ने मामले को शीघ्रता से तय करने में सर्वोच्च न्यायालय की आशा और विश्वास को नहीं रख सका। न्यायमूर्ति सी.वी. कार्तिकेयन ने आईपीएस अधिकारी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए अपने फैसले में माफी का एक नोट संलग्न किया।

कोर्ट ने कहा,

"मुझे माफी का एक नोट संलग्न करना चाहिए। उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय की आशा और विश्वास को नहीं रख सका। मामले को 6 साल से अधिक समय के बाद पूरी तरह से सुना गया और इस आदेश से विवाद का निपटारा होने की उम्मीद है।"

संक्षेप में तथ्य

पाज़ी फॉरेक्स ट्रेडिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के तीन निदेशकों के खिलाफ जनता से कथित तौर पर वादा करने के लिए एक मामला दर्ज किया गया था कि इस तरह एकत्र की गई जमा राशि पर बहुत कम अवधि में उच्च लाभांश/ब्याज का भुगतान किया जाएगा और इस तरह जनता से करोड़ों की जमा राशि ली गई।

1000 से अधिक जमाकर्ताओं से करीब 100 करोड़ रुपये एकत्र किए गए, लेकिन वे अपने वादे को पूरा नहीं कर सके। इसलिए इस मामले में सितंबर 2009 में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

इसके अलावा, दिसंबर 2009 में, निदेशकों में से एक, कमलावली अरुमुगम 2 दिनों के लिए लापता हो गया और मामले में एक गुमशुदगी का मामला दर्ज किया गया था। हालाकि, जब वह सामने आई, तो उसने दावा किया कि उसे अज्ञात व्यक्तियों ने अपहरण कर लिया था (बाद में उसने दावा किया कि उसने अपहरण होने का नाटक किया था)।

फिर से फरवरी 2010 में उसने एक और बयान दिया कि उसे वी.मोहन राज, जो अन्नामलाई पुलिस स्टेशन के पुलिस निरीक्षक हैं और शनमुगैया, सीसीबी इंस्पेक्टर से लगातार जबरन वसूली की धमकी दी गई थी।

उन्होंने कथित तौर पर माना कि वे पाज़ी ग्रुप कंपनी के निवेशकों/जमाकर्ताओं के साथ उनकी परेशानियों में उनकी सहायता करने में सक्षम होंगे, अगर उसने उन्हें 3 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया।

इसे देखते हुए लापता मामले को जबरन वसूली के मामले में बदल दिया गया और इसके बाद मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार निवेश और लापता मामले को सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया।

सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली और मामले में एक अंतिम रिपोर्ट दायर की, जिसमें सीबीआई मामलों के लिए विशेष अदालत, कोयंबटूर ने आईपीसी धारा 120-बी के तहत 347, 384, 506 (i), 507 और वर्तमान याचिकाकर्ता [तत्कालीन आईजी (पश्चिम क्षेत्र)] और अन्य के खिलाफ पीसी अधिनियम 1988 की धारा 13(1)(डी), 8, 10, 13(2) के तहत अपराध का संज्ञान लिया।

वर्ष 2012 में आईजी प्रमोद कुमार (वर्तमान याचिकाकर्ता) ने उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर कर सीबीआई को उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने से रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की क्योंकि केंद्र से उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी नहीं मिली थी।

2012 में रिट याचिका को खारिज कर दिया गया और 2013 में इसकी अपील भी खारिज कर दी गई थी। हालांकि, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की और शीर्ष अदालत ने 2015 में कोर्ट को उन्हें नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया।

इस अवधि के दौरान, सीबीआई पहले ही आर्थिक अपराध मामले के साथ-साथ जबरन वसूली मामले में अंतिम रिपोर्ट दर्ज कर चुकी थी। साथ ही आर्थिक अपराध मामले में सुनवाई शुरू हुई। हालांकि, उच्चतम न्यायालय के आदेश के कारण रंगदारी का मामला आगे नहीं बढ़ सका।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका में प्रमोद कुमार और प्रतिवादियों को 13 अप्रैल, 2015 को उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया और आगे कहा कि उन्हें भरोसा है और उम्मीद है कि उच्च न्यायालय जल्द से जल्द मामले का निपटारा करेगा।

अब इसी याचिका पर 6 साल से अधिक समय के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है।

गौरतलब है कि कोर्ट ने एक बार फिर से आईजी कुमार द्वारा दायर 2012 की रिट याचिका को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार नए सिरे से सुनवाई के बाद खारिज कर दिया है।

अदालत ने सीबीआई को जांच और बाद में सीबीआई द्वारा जांच के हस्तांतरण की पुष्टि की है और सीबीआई को कानून के प्रावधानों के अनुसार मामले को आगे बढ़ाने का भी निर्देश दिया है। इसके साथ ही अब जबरन वसूली का मामला अपने सामान्य तरीके से आगे बढ़ सकता है।

केस का शीर्षक - प्रमोद कुमार बनाम भारत संघ एंड अन्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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