संवाद की समस्या : ब्राज़ील के नागरिक के ख़िलाफ़ एनडीपीएस मामले को चेन्नई से दिल्ली की अदालत में ट्रांसफर किया
न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने कहा कि चेन्नई के कोर्ट में जैलसों मानोइल दा सिलवा के ख़िलाफ़ मामले की सुनवाई में पिछले चार सालों में ज़्यादा प्रगति इसलिए नहीं हुई है क्योंकि संवाद की समस्या है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि चेन्नई कोर्ट में पिछले चार सालों से सुनवाई अमूमन ठप पड़ी है और इसका प्राथमिक कारण यह है कि अपने वकील से वह बात नहीं कर सकते और अपना बचाव करना उनके लिए व्यावहारिक रूप से मुश्किल हो गया है। उसने कहा कि भारत में ब्राज़ील का दूतावास आरोपी को मदद करने को इच्छुक है अगर इस मामले की सुनवाई को चेन्नई से दिल्ली की अदालत में ट्रांसफर कर दिया जाए।
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने कहा कि आरोपी प्रभावी क़ानूनी प्रतिनिधित्व का हक़दार है और इस तरह की मदद चेन्नई कोर्ट में नहीं दी जाती है।
इन दलीलों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने कहा,
…अगर इस मामले को दिल्ली की अदालत में ट्रांसफर कर दिया जाता है तो नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो जो कि इस मामले में अभियोजक है, उसे कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि उसके अधिकारी और वक़ील दिल्ली में उपलब्ध हैं।
सीआरपीसी की धारा 406
गलती से इस आदेश में सीआरपीसी की धारा 406 के बजाए सीपीसी 25 का उल्लेख किया गया है। सिविल मामले ट्रांसफर करने के लिए सीपीसी की धारा 25 के तहत आवेदन करना होता है।
किसी आपराधिक मामले को एक राज्य की अदालत से दूसरे राज्य की अदालत में ट्रांसफर करने के लिए सीआरपीसी की धारा 406 के तहत आवेदन देना होता है। यह धारा सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले को समकक्ष या किसी हाईकोर्ट के तहत किसी ऊँची अदालत में ट्रांसफर करने का अधिकार देता है।
सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ ने नाहर सिंह यादव बनाम भारत संघ AIR 2011 SC 1549 मामले में अपने आदेश में केस के ट्रांसफ़र को लेकर कुछ निर्देश दिए थे जो इस तरह से हैं -
1. जब यह लगे कि राज्य मशीनरी या अभियोजन आरोपी के साथ हाथ मिलाए हुए है और न्याय नहीं होने की आशंका है।
2. अगर इस बात के सबूत हैं कि आरोपी अभियोजन पक्ष के गवाह को प्रभावित कर सकता है या शिकायतकर्ता को शारीरिक नुक़सान पहुंचा सकता है।
3. अगर आरोपी, शिकायतकर्ता/अभियोजन, गवाहों को असुविधा होती है और अधिकारियों और ग़ैर-सरकारी गवाहों के आने-जाने पर होने वाले खर्च को वहन करने के कारण राज्य के ख़ज़ाने पर बोझ पड़ता है।
4. माहौल सांप्रदायिक रूप से तनावपूर्ण है और क्योंकि जो आरोप लगाए गए हैं और और जिस तरह का अपराध आरोपी ने किया है उससे ऐसा लगता है कि न्यायपूर्ण और निष्पक्ष सुनवाई मुश्किल है; और
5. इस तरह के सबूत मौजूद हैं जिससे यह निष्कर्ष निकला जा सकता है कि कुछ लोग इतना ज़्यादा विरोध में हैं कि वे न्याय में सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप कर रहे हैं या कर सकते हैं।