हमारे समाज में जाति व्यवस्था गहरी जड़ें जमा चुकी है; आजादी के 75 साल बाद भी हम इस सामाजिक खतरे से बाहर नहीं निकल पाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-01-25 04:31 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

"हमारे समाज में जाति व्यवस्था गहरी जड़ें जमा चुकी है। हम खुद को एक शिक्षित समाज के रूप में गर्व करते हैं, लेकिन हम अपने जीवन को दोहरे मानकों के साथ जीते हैं। आजादी के 75 साल बाद भी हम इस सामाजिक खतरे से बाहर नहीं निकल पाए।"

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में एक कथित ऑनर किलिंग मामले में हत्या के आरोपी को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने यह भी कहा कि यह उन समझदार लोगों का नैतिक कर्तव्य है, जो वंचितों और दलितों की रक्षा करते हैं ताकि वे सुरक्षित, सुरक्षित और आरामदायक महसूस करें।

बेंच ने आगे कहा,

"इसके साथ ही, दूसरे समूह को भी लगता है कि वे समाज का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा हैं। यह देश के व्यापक हित में है। सभी के आत्मनिरीक्षण के लिए इस मामले पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।"

संक्षेप में मामला

अदालत सन्नी सिंह [ आईपीसी की धारा 302, 307, 506, 120बी के तहत दर्ज केस] द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे निचली अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया था।

प्राथमिकी दर्ज कराने वाले मुखबिर ने आरोप लगाया कि उसके छोटे भाई (अनीस कुमार/मृतक) की प्रशिक्षण अवधि के दौरान दिन के उजाले में 17 लोगों के एक समूह ने हत्या कर दी गई। वह अनुसूचित जाति समुदाय से था और एक ग्राम पंचायत अधिकारी था। वह अपने पाठ्यक्रम के दौरान एक लड़की से प्यार कर बैठा जो उच्च जाति से है और बाद में उसने उससे शादी कर ली थी।

आगे यह भी आरोप लगाया गया कि चूंकि लड़की के परिवार वाले इस शादी को स्वीकार नहीं किए और साजिश रचकर अनीस कुमार की दिनदहाड़े हत्या कर दी।

मुखबिर ने यह भी आरोप लगाया कि अभिषेक तिवारी, विवेक तिवारी और सन्नी सिंह (आवेदक) ने अपनी पिछली दुश्मनी के कारण इस अपराध में सक्रिय रूप से भाग लिया और इस तरह उन्हें अनीस कुमार की दिनदहाड़े हत्या करने में मदद की।

तर्क

आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि उसका मामला नलिन मिश्रा, अजय मिश्रा अभिषेक तिवारी आदि की तुलना में बेहतर है, जो मृतक की पत्नी के रिश्तेदार हैं और जिन्हें पहले ही जमानत दी जा चुकी है।

वकील ने उपरोक्त नामित व्यक्ति का उल्लेख करते हुए तर्क दिया कि अपराध करने में उनका कुछ मकसद हो सकता है, लेकिन जहां तक आवेदक का संबंध है, इसका इस मामले से कुछ लेना-देना नहीं है।

कोर्ट की टिप्पणियां

कोर्ट ने सीआरपीसी की 161 के तहत मृतक की पत्नी के बयान दर्ज किए और नोट किया कि उसने आवेदक के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा।

अदालत ने आगे आवेदक के वकील द्वारा प्रस्तुत तर्क में सार पाया और नोट किया कि न तो आवेदक से, न ही उसके द्वारा इंगित करने पर पुलिस ने कोई आपत्तिजनक सामग्री बरामद की है।

अपराध की प्रकृति, साक्ष्य, अभियुक्त की मिलीभगत, पक्षकारों के लिए वकील की दलीलें, अपराध के तरीके और पहले से ही हिरासत में लिए जाने की अवधि को ध्यान में रखते हुए मामले के मैरिट के आधार अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता जमानत का हकदार है।

हालांकि, अदालत को गहरा दुख हुआ जब मामले में मुखबिर ने शिकायत की कि मृतक की पत्नी (विधवा) और उसके परिवार के अन्य सदस्य सड़क पर हैं और एक सुरक्षित आश्रय चाहते हैं।

कोर्ट ने इस पर अपनी गहरी पीड़ा और चिंता दर्ज करते हुए एस.एस.पी. गोरखपुर से मृतक के परिवार के सदस्यों को आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया। साथ ही समय-समय पर मूल्यांकन करने के बाद ट्रायल के दौरान आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने और हर उस व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया जो कानून अपने हाथ में लेना चाहता है।

केस का शीर्षक - सन्नी सिंह बनाम यूपी राज्य एंड अन्य

केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 22

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