क्या नियोक्ता अपने कर्मचारियों को COVID-19 टीकाकरण कराने के लिए मजबूर कर सकते हैं?: दिल्ली हाईकोर्ट ने स्कूल शिक्षक की याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2021-11-17 10:56 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक स्कूल टीचर की याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिका में स्कूल टीचर ने नियोक्ता द्वारा जारी एक परिपत्र को चुनौती दी गई थी, जिसमें सेवाएं प्रदान करने के लिए COVID-19 टीकाकरण कराना अनिवार्य था।

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने इस मामले को एक निजी सहायता प्राप्त स्कूल में कार्यरत एक शिक्षक द्वारा दायर एक अन्य याचिका के साथ जोड़ दिया है, जिसमें दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है कि शहर के स्कूलों में काम करने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों को स्कूलों में भाग लेने की अनुमति नहीं है, अगर वे 15 अक्टूबर तक टीका लगाने में विफल रहते हैं।

इस मामले में राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, गौतमपुरी द्वारा जारी सर्कुलर को चुनौती दी गई है क्योंकि इसमें कहा गया है कि ऐसे शिक्षक और अन्य कर्मचारी जिन्हें 15 अक्टूबर, 2021 तक टीका नहीं लगाया गया है, उन्हें छुट्टी पर माना जाएगा।

यहां याचिकाकर्ता, जिसे अगस्त 2019 में प्रतिवादी स्कूल में इतिहास के शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था, का आज तक टीकाकरण नहीं हुआ है। उसे डर है कि टीकाकरण का उसके शरीर पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ सकता है और इसलिए वह अपने शरीर को किसी भी बाहरी पदार्थ के अधीन करने के लिए तैयार नहीं है।

याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष अपने अधिकार पर जोर देते हुए तर्क दिया कि ऐसा कोई वैज्ञानिक डेटा नहीं है जो यह बताता हो कि टीकाकरण वायरस के संचरण को रोकता है।

आगे कहा कि वह संक्रमण को रोकने के लिए सरकार और स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा निर्धारित सभी सावधानियां बरतने को तैयार है। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस विषय पर व्यापक शोध किया है और इसे कोर्ट के रिकॉर्ड में लाने को तैयार हैं।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि टीकाकरण न करवाकर याचिकाकर्ता को छात्रों के जीवन को जोखिम में डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह रेखांकित किया गया कि याचिकाकर्ता किसी भी सहवर्ती बीमारी से पीड़ित नहीं है और इसलिए इस बात का कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं है कि वह टीका क्यों नहीं लगवाना चाहता है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने कहा,

"टीकाकरण पूरी तरह से स्वैच्छिक है। टीकाकरण न कराना कोई अपराध नहीं है। सरकार को स्टैंड लेने दें कि वे टीके के अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभावों की जिम्मेदारी लेंगे।"

इस पर सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता सिद्धार्थ कृष्ण द्विवेदी ने जवाब दिया,

''पूरे देश में टीकाकरण हो रहा है। सरकार ऐसा स्टैंड नहीं ले सकता।''

जैसा कि बेंच ने मामले में कोई अंतरिम राहत देने के लिए अनिच्छा व्यक्त की, याचिकाकर्ता ने याचिका में अपने अधिकारों और तर्कों के पूर्वाग्रह के बिना तुरंत टीकाकरण कराने का बीड़ा उठाया।

तदनुसार, प्रतिवादियों को इस मामले में 4 सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। यदि कोई रीज्वाइंडर हो तो दो सप्ताह के भीतर दाखिल किया जा सकता है।

मामला 3 फरवरी 2022 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

कोर्ट ने इस बीच यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता टीकाकरण कराने के लिए तैयार है। इसलिए वह 15 अक्टूबर तक खुद को टीका नहीं लगवाने में उसके पूर्व चूक को माफ नहीं करेगा, जो कि आक्षेपित परिपत्र के संदर्भ में है।

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