इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2005 से कार्यरत चतुर्थ श्रेणी संविदा कर्मचारियों के लिए नियमित कर्मचारियों के बराबर न्यूनतम वेतन का आदेश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह 2005 से उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी के चार संविदा कर्मचारियों को (नियमित कर्मचारियों के बराबर) न्यूनतम वेतन दे।
यह आदेश जस्टिस आलोक माथुर की पीठ ने दिया, जिसने 'पंजाब सरकार बनाम जगजीत सिंह (2017) 1 एससीसी 148' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया, जिसमें यह कहा गया था कि नियमित कर्मचारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर लगातार कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले कर्मचारी भी 'समान काम के लिए समान वेतन' के प्रावधानों के अनुसार समान वेतन पाने के हकदार हैं।
कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की,
"...याचिकाकर्ता काफी लंबे समय से काम कर रहे हैं और उन्हें केवल 7500/- रुपये प्रति माह मिल रहे हैं, जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम है और तदनुसार, इस कोर्ट का सुविचारित मत है कि याचिकाकर्ता भी न्यूनतम वेतनमान पाने के हकदार हैं, जैसा कि नियमित कर्मचारियों को दिया जा रहा है, क्योंकि उनके द्वारा समान सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।"
अनिवार्य रूप से, कोर्ट लखनऊ स्थित हाईकोर्ट विधिक सेवा उप समिति से जुड़े चार संविदा कर्मचारियों द्वारा दायर एक रिट याचिका से निपट रहा था, जिन्हें वर्ष 2005 में चपरासी और लिपिक के पदों पर नियुक्त किया गया था। उन्हें प्रतिमाह पांच हजार रुपये की राशि दी जा रही थी, जिसे हाल ही में बढ़ाकर साढ़े सात हजार रुपये किया गया था।
इससे पहले, याचिकाकर्ताओं ने 2015 में हाईकोर्ट का रुख किया था और अपना वेतन बढ़ाने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग की थी, हालांकि, 2018 में हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर फैसला करने का निर्देश देते हुए इसका निस्तारण कर दिया था।
उक्त अभ्यावेदन को अधिकारियों द्वारा खारिज कर दिया गया था और यहां तक कि उनके मामले को न्यूनतम वेतनमान प्रदान करने के लिए विचार नहीं किया गया था, इसलिए, याचिकाकर्ताओं ने न्यूनतम वेतनमान प्रदान करने का अनुरोध करते हुए मौजूदा याचिका के साथ हाईकोर्ट का रुख किया था।
हालांकि, 'पंजाब सरकार बनाम जगजीत सिंह' के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि याचिकाकर्ता काफी लंबे समय से काम कर रहे हैं और केवल 7500/ - रुपये प्रतिमाह प्राप्त कर रहे हैं, कोर्ट ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं को न्यूनतम वेतनमान देने के लिए नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल - सुखवीर सिंह व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (प्रधान सचिव के माध्यम से) एवं लीगल रिमेम्बरेंस एवं अन्य [रिट अपील संख्या – 2516/2019]
केस टाइटल - 2022 लाइवलॉ (इलाहाबाद) 504
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