दिल्ली कोर्ट ने अदानी ग्रुप के खिलाफ एकपक्षीय 'गैग ऑर्डर' किया ख़ारिज

Update: 2025-09-18 12:39 GMT

दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने गुरुवार को वह एकपक्षीय आदेश रद्द किया, जिसके तहत चार पत्रकारों को अडानी ग्रुप से संबंधित कथित मानहानिपूर्ण रिपोर्टें प्रकाशित करने से रोका गया। यह आदेश निचली अदालत ने 6 सितंबर को पारित किया।

डिस्ट्रिक्ट जज आशीष अग्रवाल ने पत्रकार रवी नायर, अबीर दासगुप्ता, अयस्कांत दास और आयुष जोशी की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि संबंधित लेख पहले से ही लंबे समय से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है। ऐसे में ट्रायल कोर्ट को आदेश पारित करने से पहले पत्रकारों को सुना जाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि यदि बाद में यह पाया जाता कि लेख मानहानिपूर्ण नहीं हैं तो पहले से हटाए गए लेखों को बहाल करना व्यावहारिक रूप से असंभव होता। इसलिए ट्रायल कोर्ट का आदेश टिकाऊ नहीं है और इसे रद्द किया जाता है। हालांकि जज ने यह स्पष्ट किया कि इस आदेश का मामले के गुण-दोष पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

मामले की सुनवाई के दौरान पत्रकारों की ओर से एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि अधिकांश लेख जून, 2024 से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं। ऐसे में कोई आपात स्थिति नहीं थी, जिसके आधार पर निचली अदालत इतनी असाधारण राहत दे सकती थी। उन्होंने कहा कि अदालत ने बिना कोई ठोस कारण बताए प्रकाशनों को 'अपुष्ट' या 'मानहानिपूर्ण' मान लिया और Blanket Order जारी कर दिया, जिससे सैकड़ों लेख, वीडियो और पोस्ट हटाने पड़े।

ग्रोवर ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर गहरी चोट बताते हुए कहा,

“क्या इस देश में कोई ऐसा कानून है, जो कहे कि आप किसी संस्था पर सवाल नहीं उठा सकते? अदालत ने नोटिस दिए बिना ऐसा आदेश पारित कर दिया, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ा।”

वहीं अडानी ग्रुप की ओर से एडवोकेट विजय अग्रवाल ने तर्क दिया कि पत्रकारों द्वारा हाल ही में भी कंपनी के खिलाफ सामग्री साझा की जा रही है, जो एक सुनियोजित अभियान का हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकारों के पास ट्रायल कोर्ट में जाकर आदेश निरस्त कराने का वैधानिक उपाय उपलब्ध था।

गौरतलब है कि इसी मुद्दे पर पत्रकार परांजॉय गुहा ठाकुरता की याचिका पर भी उसी अदालत में आदेश सुरक्षित रखा गया था।

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