आरोपी अगर शराब पीकर अदालत में आता है तो इस वजह से उसकी ज़मानत रद्द नहीं की जा सकती : हिमाचल हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

Update: 2019-03-27 10:27 GMT

Himachal Pradesh High Court

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने उस सत्र अदालत की खिंचाई की है जिसने एक आरोपी की ज़मानत इसलिए ख़ारिज कर दी क्योंकि उसके मुँह से शराब की गंध आ रही थी।

न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान ने इस मामले में जज को कारण बताओ नोटिस जारी किया और कहा कि आरोपी शराब पीकर अदालत आया था यह अपने आप में उसकी ज़मानत को ख़ारिज करने का आधार नहीं हो सकता।

सत्र अदालत ने अपने आदेश में ज़मानत ख़ारिज करते हुए कहा था :"इस समय, आरोपी के मुँह से शराब की बदबू आ रही है। आरोपी का सत्र अदालत के समक्ष इस स्थिति में पेश होना ठीक नहीं है। इसलिए वह इस कोर्ट से मिले स्वैच्छिक ज़मानत राहत प्राप्त करने के लायक़ नहीं है। इसलिए उसकी ज़मानत का बॉंड रद्द किया जाता है और उसे हिमाचल प्रदेश सरकार ज़ब्त करती है और उसे 27 मार्च 2019 तक न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है. जेल का वारंट इसी के अनुरूप बनाया जाए…"

आरोपी ने सत्र अदालत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील की। हाइक्रोत ने कहा कि सत्र अदालत के जज ने यह आदेश बहुत लापरवाही से दिया है और इसेमें क़ानूनी सिद्धांतों को नहीं माना गया है।

कोर्ट ने कहा :मैं यह समझ नहीं पाया हूँ कि क़ानून के किस प्रावधान और किस अथॉरिटी के तहत सत्र जज ने आरोपी का ज़मानत रद्द कर दिया है जो उसे पहले 8.5.2015 को दिया गया था। अगर याचिकाकर्ता का ज़मानत रद्द किया जाना था तो ऐसा क़ानून के अनुरूप किया जाता और इसके लिए सीआरपीसी की धारा 439 (2) का सहारा लिया जाता।

इस बारे में हाईकोर्ट ने रमेश चंद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य मामले में आए फ़ैसले का ज़िक्र किया जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ़ इसलिए कि आरोपी का अदालत में सिर्फ़ शराब के नशे में आने से कोर्ट के पीठासीन पदाधिकारी का न तो अपमान हुआ है और न ही उनके (कार्य में) कोई अवरोध डाला है।

कोर्ट ने इसके साथ ही सत्र अदलात के आदेश को रद्द करने का आदेश सुनाया।


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