दूसरी अपील पर ग़ौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर हाईकोर्ट के सीमित अधिकार की याद दिलाई [निर्णय पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक फ़ैसले में हाईकोर्टों को एक बार फिर याद दिलाया कि सीपीसी की धारा 100 के तहत किसी मामले पर ग़ौर करते हुए उसकी सीमा क्याहै।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक फ़ैसले को निरस्त करते हुए न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा :
"इस अदालत के कई फ़ैसलों के बावजूद …हाईकोर्ट सीपीसी की धारा 100 के तहत समवर्ती फ़ैसलों के निचोड़ को बिगाड़ रहा है…"
वर्तमान मामले में हाईकोर्ट ने जो बड़े प्रश्न सामने रखे हैं वे हैं :
- निचली अदालत की किसी विशेष निचोड़ को पलते बिना क्या अपीली अदालत निचली अदालत के निचोड़ को उलट सकता है या नहीं।
- क्या निचली अपीली अदालत का आदेश भ्रष्ट है और क्या यह आदेश साक्ष्य को ग़लत पढ़े जाने के कारण दिया गया है?
पीठ ने कहा कि इस प्रश्न को क़ानून का कतई बड़ा प्रश्न नहीं कहा जा सकता। पीठ ने कहा : हाईकोर्ट ने क़ानून के तहत जो बड़ा प्रश्न उठाया है उस पर ग़ौर करने के बादहमारा मानना यह है कि दूसरी अपील पर ग़ौर करते हुए हाइकोर्ट ने जो प्रश्न उठाए हैं उसे अहम प्रश्न माना ही नहीं जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि पेश किए गए साक्ष्यों पर दुबारा ग़ौर करने और निचली अदालतों या प्रथम अपीली अदालत जिस निर्णय पर पहुँचा है उसको पलटने का अधिकार हाईकोर्ट कोनहीं है और अगर प्रथम अपीली अदालत ने अपने विवेक का इस्तेमाल उचित तरीक़े से किया है तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसका निर्णय क़ानूनी या प्रक्रियात्मक ग़लतीका शिकार है और इसीलिए दूसरी अपील में इसमें हस्तक्षेप की ज़रूरत है।
पीठ ने अंत में कहा :
"हमने जो ऊपर कहा है उसे हम कहने के लिए बाध्य हैं और हम हाईकोर्टों को यह ताक़ीद करते हैं कि सीपीसी की धारा 100 के तहत वे अपनी सीमाओं को समझें और हमदुबारा यह उम्मीद करते हैं कि हाईकोर्ट दूसरी अपील में हस्तक्षेप करने से पहले इस बात का ख़याल रखेंगे…"