महज़ कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए रिट याचिका पर ग़ौर नहीं किया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2019-11-18 10:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि रिट याचिका पर सिर्फ़ इसलिए ग़ौर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना है।

न्यायमूर्ति यूयू ललित और विनीत सरन की पीठ केंद्रीय उत्पाद अधिनियम, 1944 के तहत दायर एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका को स्वीकार कर लिया और उसने संबंधित विभाग को यह बताने का निर्देश दिया कि वह प्रथम दृष्ट्या इस बात पर ग़ौर करे कि इस मामले को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त मटीरीयल है कि नहीं।

अदालत ने कहा कि उत्पाद विभाग द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के ख़िलाफ़ अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका को स्वीकार करना अदालत के लिए ठीक नहीं है।

अदालत ने कहा, 

"उत्पाद का क़ानून अपने आप में एक पूर्ण संहिता है और अदालत के लिए यह उचित नहीं होगा कि वह इसके ख़िलाफ़ अनुच्छेद 226 के तहत कोई रिट याचिका स्वीकार करे। अदालत ने कहा कि संबंधित व्यक्ति को चाहिए कि पहले वह अपनी सभी आपत्तियाँ उस अथॉरिटी के समक्ष उठाए जिसने कारण बताओ नोटिस जारी किया है। अगर इस व्यक्ति के ख़िलाफ़ कोई प्रतिकूल आदेश जारी किया गया है तो इस शिकायत का उपचार मजूद क़ानून के तहत किया जा सकता है।"

केंद्रीय उत्पाद आयुक्त, हल्दिया बनाम मै. कृष्णा वैक्स के वर्तमान मामले में उत्पाद अपीली प्राधिकरण ने कहा था कि अधिनियम के तहत केंद्रीय उत्पाद अधिकारी जो कि आयुक्त से नीचे के पद पर है, द्वारा अगर कोई आदेश दिया गया है तो उसके ख़िलाफ़ अपील की जा सकती है। उसने इस आपत्ति को ख़ारिज कर दिया था कि अपील पूरी तरह असामयिक है क्योंकि मामले पर अभी ग़ौर नहीं किया गया है; प्रतिवादी ने कारण बताओ नोटिस का कोई जवाब अभी नहीं दिया है और संबंधित अथॉरिटी ने अभी इस पर कोई फ़ैसला नहीं दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को ख़ारिज कर दिया और निर्देश दिया कि कारण बताओ नोटिस पर कार्यवाही को आगे बढ़ाकर उसे अंजाम तक पहुँचाया जाए। 


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