आवासीय इलाकों के निकट ताड़ी की दुकानें शांति से जीने के अधिकार को प्रभावित करती है: न्यायमित्र ने करेल हाईकोर्ट से कहा
केरल हाईकोर्ट के समक्ष एक न्याय मित्र की ओर से सौंपी गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि आवासीय इलाकों के निकट ताड़ी की दुकानें चलाने की अनुमति देना लोगों के शांतिपूर्वक जीवन जीने के अधिकार को प्रभावित करता है और फलस्वरूप उनके निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
न्यायमूर्ति मोहम्मद मुश्ताक़ ने आवासीय इलाके से ताड़ी की दुकानों को हस्तांतरित करने संबंधी विलासिनी की याचिका पर विचार करते हुए वकील अशोक एम किनी और आर टी प्रदीप को यह पता करने के लिए न्यायमित्र नियुक्त किया था कि क्या ताड़ी की दुकानों से लोगों की निजता के अधिकार प्रभावित हुए।
अधिवक्ता अशोक किनी द्वारा पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि आवासीय इलाकों में ताड़ी की दुकानों की मौजूदगी के कारण महिलाओं और बच्चों को अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। एक स्थानीय निवासी से पूछताछ के आधार पर न्यायमित्र ने लिखा है कि ताड़ी पीने वाले हमेशा महिलाओं के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां करते हैं। उन इलाकों की महिलाएं नशे में धुत व्यक्तियों से हमेशा उत्पीड़न एवं डर-भय का शिकार होती रहती हैं। इलाके के छोटे बच्चों पर भी ताड़ी की दुकानों का बुरा असर हुआ है। ये दुकानें इन बच्चों में आसानी से नशे की आदत डाल रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ताड़ी की दुकानों के भीतर और बाहर होने वाले झगड़ों के कारण निकटवर्ती घरों का शांतिपूर्ण माहौल हमेशा प्रभावित होता है।
रिपोर्ट में आबकारी नियमों में विसंगतियों का भी उल्लेख किया गया है। आबकारी नियमों में शैक्षणिक संस्थानों, पूजा स्थलों, कब्रगाहों और एससी/एसटी कॉलोनियों से 200 मीटर के भीतर ताड़ी की दुकानें लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन आवासीय इलाकों के बारे में इसमें कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इससे पहले एक अन्य मामले (प्रशांत बाबू एम बनाम कन्नूर कल्लू चेथू व्यवसाय तोजिलाली सहकरण संघम) में हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि यह बहुत ही विचित्र बात है कि जिस नियम के तहत कब्रगाह के निकट ताड़ी की दुकानों की इजाजत तो नहीं है, लेकिन जहां लोग रहते हैं एवं शांति की इच्छा रखते हैं, उन आवासीय इलाकों का जिक्र इसमें नहीं है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि ताड़ी की दुकानों का एससी/एसटी कॉलोनियों पर जो दुष्प्रभाव होता है, वहीं दुष्प्रभाव अन्य आवासीय इलाकों पर भी पड़ता है। इसलिए 200 मीटर की दूरी संबंधी आबकारी नियमों से उन आवासीय इलाकों को बाहर रखने का कोई तर्क नहीं है जो एससी/एसटी कॉलोनियां नहीं है।
न्यायमित्र ने ताड़ी की दुकानों की दूरी से संबंधित नियमों में आवासीय इलाकों को शामिल करने की सलाह दी है।
इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि नियम सात(तीन) के तहत सक्षम अधिकारी को सार्वजनिक शांति या नैतिकता के लिए अथवा औचित्य को ध्यान में रखते हुए ताड़ी की दुकानों को बंद करने का आदेश देने का अधिकार है। इस अधिकार का इस्तेमाल आवासीय इलाकों में उपद्रव के लिए जिम्मेदारी ताड़ी दुकानों को बंद करने के आदेश के लिए भी किया जा सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "चूंकि रोकथाम इलाज से बेहतर है। इसलिए यह जरूरी है कि राज्य सरकार आवासीय इलाकों में ताड़ी की दुकानें स्थापित करने की अनुमति देने से पहले सामाजिक प्रभाव का अध्ययन करे।"
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "निजता का अधिकार जीने के मौलिक अधिकार का एक पहलू है और यह ताड़ी दुकानों का लाइसेंस लेने वालों के व्यावसायिक हितों की तुलना में ज्यादा बहुमूल्य है।"
अधिवक्ता अशोक ने कहा, "जब राज्य सरकार किसी आवासीय इलाके में ताड़ी का कारोबार शुरू करने का लाइसेंस देती है तो वह वहां सार्वजनिक उपद्रव का जरिया विकसित करती है। राज्य सरकार का वैसा कार्य, जो सार्वजनिक उपद्रव का कारण बने, मेरे विचार में इन इलाकों के निवासियों की निजता के सामूहिक अधिकारों का उल्लंघन है।"
इस मामले के दूसरे न्यायमित्र अधिवक्ता आर टी प्रदीप ने आधुनिकीकरण के माध्यम से ताड़ी सेक्टर को नया स्वरूप देने और इससे जुड़ी बुराइयों को समाप्त करने की आवश्यकता जतायी।
प्राकृतिक ताड़ी के नाम पर ज्यादातर दुकानों में बड़ी मात्रा में मादक द्रव्यों के साथ जहरीली शराब परोसी जाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि ताड़ी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने तथा ताड़ी की दुकानों की साफ सफाई के उचित उपाय यदि किये जायें तो ये दुकानें उपद्रव का जरिया नहीं रह जायेंगी।
रिपोर्ट में कहा गया है, "बदलते समय के साथ ताड़ी की दुकानों को नया रूप दिये जाने से इस पर लगा धब्बा काफी हद तक साफ हो जायेगा। यह ऐसा स्थान होना चाहिए, जहां लिंग से परे लोग, आदर्श व्यक्ति और जनसाधारण भी स्वस्थ पेय एवं खाद्य सामग्रियों के लिए वहां जा सकें। ताड़ी की दुकानों पर जाने वाले लोगों की दागदार छवि समाप्त होनी चाहिए।"
इस रिपोर्ट के अनुसार, ताड़ी की दुकानों के आधुनिकीकरण एवं उनकी गुणवत्ता बढ़ाने से इन स्थानों को 'असामाजिक एवं अस्वास्थ्यकर' समझने वाले आसपास के लोगों की अवधारणा बदलेगी और उनकी निजता सुरक्षित होगी।