सुप्रीम कोर्ट ने धोखे से धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने धोखे से धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए एख स्पेशल टास्क फोर्स गठित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार किया। इसके साथ याचिका वापस लेने के रूप में खारिज कर दी।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ बेंच के समक्ष लंबित मामले में एक याचिका दायर करने की अनुमति दी।
पीठ ने कहा,
“हमें आपको क्यों सुनना चाहिए? आप अभियोग के लिए एक आवेदन दायर करते हैं। हम आपको सुनेंगे, अन्यथा याचिकाओं की बहुलता होगी।"
पीठ इसी मुद्दे पर भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। उस याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंच ने टिप्पणी की थी कि जबरन धर्मांतरण एक गंभीर मुद्दा है।
एक आशुतोष कुमार शुक्ला द्वारा दायर याचिका में आगे धोखाधड़ी या जबरदस्ती या लालच देकर उपहार / मौद्रिक लाभ देकर धोखे से धर्म परिवर्तन को दंडनीय अपराध घोषित करने की मांग की गई क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के खिलाफ है।
याचिका में केंद्र को इस तरह के जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की भी मांग की गई है और भारत के विधि आयोग से उपहार और मौद्रिक लाभों के माध्यम से डराने, धमकाने और धोखे से धर्म परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए एक रिपोर्ट के साथ-साथ एक विधेयक तैयार करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक अधिकार की गारंटी देने के लिए, 'प्रचार' शब्द का अर्थ दूसरों के उत्थान के लिए अपने धार्मिक विचारों को फैलाना और प्रचारित करना है। लेकिन प्रचार शब्द बिना किसी जबरदस्ती के केवल अनुनय और व्याख्या को इंगित करता है। किसी के धर्म का प्रचार करने का अधिकार किसी व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार नहीं देता है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि दूसरों के धर्म को कम आंकने से धार्मिक दुर्भावना पैदा हो सकती है और हिंसा हो सकती है, जो सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा को बाधित कर सकती है। इसलिए, धर्म के प्रचार के अधिकार और जनता के आदेश और जीवन की सुरक्षा के अधिकार के बीच संतुलन बनाए रखना राज्य का काम है।
याचिका में आगे कहा गया है,
"अगर लोगों के किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए किसी भी रूप में प्रचार किया जाता है, तो यह समाज के उस वर्ग की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित किया गया है।"
याचिका एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड आशुतोष दुबे के माध्यम से दायर की गई थी।
केस टाइटल: आशुतोष कुमार शुक्ला बनाम यूओपीआई | डब्ल्यूपी (सी) संख्या 1111/2022