"सुनवाई की कोई जल्दी नहीं": तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से अगले सप्ताह उल्लेख करने को कहा

Update: 2022-05-25 07:22 GMT

सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ के समक्ष बुधवार को तलाक-ए-हसन की मुस्लिम पर्सनल लॉ प्रथा के जरिए तलाक की मुस्लिम पर्सनल लॉ प्रथा को चुनौती देने वाली एक याचिका सुनवाई के लिए बुधवार को पेश किया गया।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला त्रिवेदी की अवकाश पीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद ने पत्रकार बेनज़ीर हीना द्वारा दायर याचिका का उल्लेख करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को तलाक का दूसरा नोटिस मिला है।

तलाक-ए-हसन के अनुसार, एक मुस्लिम व्यक्ति तीन महीने की अवधि में महीने में एक बार "तलाक" का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है।

सुश्री आनंद ने प्रस्तुत किया,

"तलाक-ए-हसन के वकील के माध्यम से नोटिस जारी किए गए हैं। हम कार्यवाही को चुनौती दे रहे हैं। पहला नोटिस 19 अप्रैल को जारी किया गया था। अब दूसरा नोटिस जारी किया गया है।"

जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा,

"आर्टिकल 32 के तहत क्यों?"

पिंकी आनंद ने जवाब दिया, "केवल तलाक ए बिद्दत के मुद्दे पर शायरा बानो मामले में विचार किया गया था। तलाक-ए-हसन को छोड़ दिया गया था। हम इसे चुनौती दे रहे हैं।"

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,

" सुनवाई की कोई जल्दी नहीं है। हम इसे छुट्टियों के बाद फिर से अदालत खुलने पर इसे लिस्ट करेंगे।"

"उस समय तक सब तीसरा तलाक दे दिया जाएगा और सब कुछ खत्म हो जाएगा। उसे 19 मई को दूसरा नोटिस मिला है और 20 जून को यह खत्म हो जाएगा"

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,

"इसमें कोई जल्दबाजी नहीं है। आपको 19 अप्रैल को पहला नोटिस मिला और यहां आने के लिए आपने एक अवधि तक इंतज़ार किया।"

आनंद ने अनुरोध किया,

"अदालतों के फिर से खुलने तक सब कुछ खत्म हो जाएगा। यह एक महिला के साथ दुर्व्यवहार का मामला है।"

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "आप अगले हफ्ते इसे मेंशन करें।"

इससे पहले 9 मई को भारत के मुख्य न्यायाधीश ने याचिका पर तुरंत सुनवाई करने इनकार कर दिया था ।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह प्रथा भेदभावपूर्ण है क्योंकि केवल पुरुष ही इसका प्रयोग कर सकते हैं। याचिकाकर्ता यह घोषणा चाहते हैं कि यह प्रथा असंवैधानिक करार दी जाए क्योंकि यह मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह इस्लामी आस्था की कोई अनिवार्य प्रैक्टिस नहीं है।

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