विधि आयोग को वैधानिक निकाय घोषित करने और अध्यक्ष और सदस्यों की शीघ्र नियुक्ति की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें केंद्र सरकार को एक महीने के भीतर भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करने और इसे एक वैधानिक निकाय बनाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।
दरअसल सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई है कि केंद्र को निर्देश दिया जाए कि वह एक महीने के लिए भारत के विधि आयोग/लॉ कमीशन के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करे और इसे एक वैधानिक निकाय बनाए।
वैकल्पिक रूप से, याचिकाकर्ता- सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने आग्रह किया है कि संविधान के संरक्षक और मौलिक अधिकारों के रक्षक होने के नाते, न्यायालय आवश्यक नियुक्ति करने के लिए अपनी संवैधानिक शक्ति का उपयोग कर सकता है।
याचिका में कहा गया है कि,''कार्रवाई का कारण 31 अगस्त 2018 को उस समय शुरू हुआ था जब इक्कीसवें विधि आयोग का कार्यकाल समाप्त हो गया था, लेकिन केंद्र ने न तो इसके अध्यक्ष और सदस्यों के कार्यकाल को बढ़ाया और न ही ट्वेंटी सेकंड लॉ कमीशन को अधिसूचित किया। हालांकि, 19 फरवरी 2020 को केंद्र ने ट्वेंटी सेकंड लॉ कमीशन के गठन को मंजूरी दे दी, लेकिन आज तक अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई है।''
कहा गया है कि इससे जनता को होने वाला नुकसान काफी बड़ा है क्योंकि भारत का विधि आयोग 1 सितम्बर 2018 से नेतृत्वहीन है, इसलिए सार्वजनिक मुद्दों की जांच करने में असमर्थ है। यहां तक कि विधि आयोग को संवैधानिक न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्देश भी मृत पत्र बन गए हैं - ''11 दिसम्बर 2020 को याचिकाकर्ता ने वोहरा रिपोर्ट पर कार्रवाई की मांग वाली याचिका डब्ल्यूपी (सी) 1300/2020 और काले धन,बेनामी संपत्ति व आय से अधिक संपत्ति को जब्त करने व लुटेरों को आजीवन कारावास देने की मांग वाली याचिका डब्ल्यूपी (सी) 1301/2020 को वापिस ले लिया था क्योंकि उसे लाॅ कमीशन से सपंर्क करने की लिबर्टी दी गई थी। परंतु वह ऐसा नहीं कर पाया क्योंकि आयोग तो नेतृत्वहीन है।''
यह भी बताया गया है कि चूंकि विधि आयोग 1सितम्बर 2018 से काम नहीं कर रहा है, इसलिए केंद्र को कानून के विभिन्न पहलुओं पर इस विशेष निकाय की सिफारिशों का लाभ नहीं मिल पा रहा है, जो आयोग को उसके अध्ययन और सिफारिशों के लिए सौंपे जाते हैं। आयोग अक्सर केंद्र, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों द्वारा इसको भेजे गए संदर्भ पर कानून में रिसर्च करता है और उसमें सुधार करने व नए कानून बनाने के लिए मौजूदा कानूनों की समीक्षा करता है। यह न्याय वितरण प्रणाली में सुधार लाने के लिए अध्ययन और अनुसंधान भी करता है ताकि प्रक्रियाओं में देरी, मामलों के त्वरित निपटान, मुकदमेबाजी की लागत का उन्मूलन कर सकें। भारतीय विधि आयोग न केवल उन कानूनों की पहचान करता है जिनकी अब आवश्यकता या प्रासंगिक नहीं है और जिनको तुरंत निरस्त किया जा सकता है,यह राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के प्रकाश में मौजूदा कानूनों की जांच भी करता है और उनमें संशोधन और सुधार के तरीके भी सुझाए जाते हैं। आयोग ऐसे सुझाव भी देता है जो निर्देशात्मक सिद्धांतों को लागू करने और संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक हो सकते हैं।
यह जोर देकर कहा गया है कि भारत का विधि आयोग उसको संदर्भित कानूनों और न्यायिक प्रशासन से संबंधित किसी भी विषय पर अपने विचार केंद्र, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के समक्ष रखता है या उनको बताता है। वहीं विदेशी देशों को अनुसंधान प्रदान करने के अनुरोधों पर भी विचार करता है। यह गरीबों की सेवा में कानून और कानूनी प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए सभी उपाय करता है। वहीं सामान्य महत्व के केंद्रीय अधिनियमों को संशोधित करता है ताकि उन्हें सरल बनाया जा सकें और विसंगतियों व असमानताओं दूर किया जा सकें। विधि आयोग देश के कानून के प्रगतिशील विकास और संहिताकरण के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम है और इसने अब तक 277 रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं।
याचिका में कहा गया है कि,''यदि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट को इस बात के लिए संतुष्ट करता है कि उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है, तो यह केवल 'अधिकार' और 'शक्ति' की बात नहीं है, बल्कि कोर्ट का 'कर्तव्य' व 'दायित्व' बनता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकार की रक्षा की जाए और उन्हें सुरक्षित किया जाए।''
कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति केवल विशेषाधिकार संबंधी आदेश जारी करने तक ही सीमित नहीं है। बल्कि अभिव्यक्ति का उपयोग करके, इस अधिकार क्षेत्र को बड़ा किया गया है। इसलिए, सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत एक आवेदन को केवल निम्न आधार अस्वीकार नहीं कर सकता हैः(ए) कि इस तरह के आवेदन को सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट से संपर्क किए बिना सीधा दायर किया गया है,(बी) याचिकाकर्ता के पास कुछ पर्याप्त वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं, (सी) आवेदन में तथ्य के विवादित प्रश्नों की जांच/साक्ष्य लेना शामिल है, (डी) घोषणात्मक राहत यानि परिणामी राहत के साथ लागू किए गए कानून की असंवैधानिकता के लिए घोषणा की प्रार्थना की गई है, (ई) आवेदन में उचित रिट या निर्देश के बारे में नहीं बताया गया है,(एफ) आवेदक को उचित राहत देने के लिए आम रिट कानून को संशोधित किया जाना चाहिए, (जी) संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद, जिसका उल्लंघन किया गया है, का विशेष रूप से याचिका में उल्लेख नहीं किया गया है, तो याचिकाकर्ता को विशेष अनुच्छेद को लागू करने दिया जाए।