सुप्रीम कोर्ट तलाक ए हसन को चुनौती देने वाली याचिका को शुक्रवार को सूचीबद्ध करने के लिए सहमत
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) प्रथा के माध्यम से तलाक की प्रथा तलाक-ए-हसन (Talaq-E-Hasan) को चुनौती देने वाली याचिका को शुक्रवार को सूचीबद्ध करने के लिए सहमत हो गया। तलाक-ए-हसन के अनुसार एक आदमी तीन महीने तक, हर महीने एक एक बार "तलाक" का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है।
याचिका का उल्लेख भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद ने किया।
याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए पीठ से आग्रह करते हुए सीनियर वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को तलाक के 3 नोटिस मिले हैं, जो अब अपरिवर्तनीय हो गए हैं।
सीनियर वकील द्वारा किए गए अनुरोध को स्वीकार करते हुए CJI ने कहा, "4 दिन के बाद पोस्ट करें।"
पत्रकार बेनज़ीर हीना ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अश्वनी कुमार दुबे के माध्यम से जनहित याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके पति ने उसे 19 अप्रैल को स्पीड पोस्ट के जरिए तलाक की पहली किस्त भेजी है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह प्रथा भेदभावपूर्ण है क्योंकि केवल पुरुष ही इसका प्रयोग कर सकते हैं। याचिकाकर्ता यह घोषणा चाहते हैं कि यह प्रथा असंवैधानिक करार दी जाए क्योंकि यह मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह इस्लामी आस्था की कोई अनिवार्य प्रैक्टिस नहीं है।