सोशल मीडिया का दुरुपयोग : सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया अकाउंट को आधार से जोड़ने वाली याचिकाएं हाईकोर्ट से अपने पास ट्रांसफर कीं

Update: 2019-10-22 08:59 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में दाखिल उन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर लिया है, जिनमें सोशल मीडिया अकाउंट्स को आधार से लिंक करने की मांग की गई है।

जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने केंद्र की उस बात को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र इस मामले में नियम तैयार कर रही है और 15 जनवरी 2020 तक इसे तैयार कर लिया जाएगा।

अगले साल होगी सुनवाई

पीठ ने कहा है कि वो इस मामले की सुनवाई जनवरी 2020 के आखिरी सप्ताह में करेगी। साथ ही रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया है कि वो इंटरनेट संबंधी सारी लंबित याचिकाओं की सूची तैयार करे और उन पर भी एक साथ सुनवाई होगी।

मंगलवार को सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि इन कंपनियों को देश में नहीं आना चाहिए अगर ये कानूनी एजेंसियों के साथ जानकारी साझा नहीं करना चाहती। उनका कहना है कि जानकारी डिक्रिप्ट नहीं की जा सकती, जबकि विशेषज्ञ कहते हैं कि ये संभव है।

लेकिन पीठ ने कहा कि ये स्थिति ऐसी है कि सरकार मालिक से घर की चाबी मांग रहे हैं और वो कह रहा है कि चाबी नहीं है आप खुद दरवाजा खोल लो।

पीठ ने ये भी कहा कि कानून में स्पष्ट नहीं है कि क्या अदालत ऐसी जानकारी मुहैया कराने के लिए कंपनियों को बाध्य कर सकती हैं। क्या कानून ने उन्हें इसके लिए बाध्यकारी बनाया है। केंद्र सरकार नया कानून लाकर इसे कर सकती है।

वहीं कंपनियों की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। इससे आगे मामला नहीं जाना चाहिए।

"निजता के अधिकार और देश की सुरक्षा के बीच बैलेंस बनाना जरूरी"

इस दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि निजता के अधिकार और देश की सुरक्षा के बीच बैलेंस बनाना जरूरी है। निजता के नाम पर सोशल मीडिया के जरिए आतंकियों को गतिविधियां जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

सरकार ने किया है हलफनामा दाखिल

सोमवार को सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट / सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करते हुए हेट स्पीच, फर्जी समाचार, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों, अपमानजनक पोस्ट और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में तेजी आई है।

केंद्र ने कहा है कि एक तरफ प्रौद्योगिकी ने आर्थिक और सामाजिक विकास किया है तो दूसरी तरफ झूठे समाचारों आदि में भारी वृद्धि हुई है। केंद्र ने ये भी कहा है कि लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अकल्पनीय व्यवधान पैदा करने के लिए इंटरनेट एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरा है।

केंद्र ने व्यक्तिगत अधिकारों और देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए बढ़ते खतरों को देखते हुए प्रभावी नियमों को लागू करने के लिए महसूस किया है और इसमें शामिल जटिलताओं को देखते हुए नियमों को अंतिम रूप देने के लिए 3 महीने का समय मांगा है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह ऑनलाइन निजता और राज्य की संप्रभुता के हितों को संतुलित करके सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के बारे में एक हलफनामा दायर करे। जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा था कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

दरअसल पीठ फेसबुक द्वारा मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में दाखिल उन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए दायर याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें सोशल मीडिया अकाउंट्स को आधार से लिंक करने की मांग की गई है। सुनवाई के दौरान पीठ ने साइबर अपराधियों और झूठी व भ्रामक जानकारियों के मूल निर्माताओं की खोजबीन के मुद्दे पर चर्चा की थी।

जस्टिस गुप्ता ने कहा था,

"सोशल मीडिया का दुरुपयोग खतरनाक हो गया है। सरकार को जल्द से जल्द इस मुद्दे से निपटने के लिए कदम उठाना चाहिए। हमें इंटरनेट के बारे में क्यों सोचना चाहिए? हम अपने देश के बारे में चिंता करेंगे। हम यह नहीं कह सकते कि हमारे पास तकनीक नहीं है। ऑनलाइन अपराधों की उत्पत्ति को ट्रैक करें। यदि मूल निर्माताओं के पास करने के लिए तकनीक है तो हमारे पास इसका मुकाबला करने और उनको तलाश करने की तकनीक है।"

उन्होंने आगे कहा था, " राज्य खुद को ट्रॉल होने बचा सकता है, लेकिन जब कोई व्यक्ति उनके बारे में झूठ फैलाता है तो वह क्या कर सकते हैं ? मेरी निजता की भी रक्षा होनी चाहिए, मैं अपना स्मार्टफोन बंद करने की सोच रहा हूं। "

जस्टिस गुप्ता ने कहा, "यह अदालतों के लिए नहीं है कि वे सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करें। नीति केवल सरकार द्वारा तय की जा सकती है। एक बार सरकार नीति बनाती है तो हम नीति की वैधता पर निर्णय ले सकते हैं। लेकिन निजता जैसे मुद्दों को विनियमित करने की आवश्यकता है।" 

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