सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के लिए वित्त अधिनियम 2017 के नियम रद्द किए, केंद्र को दिए नए नियम बनाने के निर्देश

Update: 2019-11-13 10:51 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वित्त अधिनियम 2017 की धारा 184 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो केंद्र सरकार को विभिन्न न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित नियमों को फ्रेमवर्क करने का अधिकार देता है।

लेकिन इसके साथ ही पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अधिनियम की धारा 184 के तहत केंद्र सरकार द्वारा पहले बनाए गए नियमों को रद्द कर दिया और नए नियमों के बनाने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को न्यायाधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में फिर से नये मानक तय करने के निर्देश दिये।

न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित किया कि न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्तियों को उनके संबंधित पेरेंट एक्ट के अनुसार तब तक जारी रहनी चाहिए जब तक कि केंद्र अधिनियम की धारा 184 के तहत नए नियम नहीं बना लेता।

इस बिंदु पर कि क्या वित्त अधिनियम 2017 को धन विधेयक के रूप में पारित किया जा सकता है, न्यायालय ने कहा कि एक बड़ी पीठ द्वारा इसके परीक्षण की आवश्यक थी और इसे बड़ी पीठ को भेजा गया है।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस रमना और जस्टिस संजीव खन्ना की बैंच ने कहा कि न्यायाधिकरणों के न्यायिक प्रभाव आकलन की जरूरत है। केंद्र को वित्त अधिनियम के प्रावधानों का पुनरीक्षण करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर यह भारत के विधि आयोग से परामर्श कर सकता है। मौजूदा ट्रिब्यूनल को समरूपता के आधार पर समामेलित किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, जिन्होंने एक अलग लेकिन सहमति वाला निर्णय लिखा, उन्होंने माना कि नियुक्ति के तरीके का न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है। अधिकरणों की अवधारणा एक विशेष निकाय के रूप में की गई है। इसे ध्यान में रखते हुए, नियुक्ति एक विधायी कार्य है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने सरकार को याद दिलाया कि न्यायाधिकरणों की देखरेख करने के लिए एक पितृ संगठन के रूप में राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग के गठन के निर्देश एल चंद्रकुमार मामले में लागू नहीं किए गए हैं।

धन विधेयक के मुद्दे पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने मामले को बड़ी पीठ को भेजने के निर्णय पर सहमति व्यक्त की। राज्यसभा को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्र की बहुलता और शक्ति के संतुलन को दर्शाता है।

फैसला रखा था सुरक्षित

10 अप्रैल को CJI रंजन गोगोई, जस्टिस रमाना, चंद्रचूड़, दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की संविधान पीठ ने रोजर मैथ्यू और रेवेन्यू बार एसोसिएशन के मामले में फैसला सुरक्षित रखा था। इस मामले से वित्त अधिनियम 2017 के प्रावधानों की संवैधानिकता पर सवाल थे और विभिन्न न्यायिक न्यायाधिकरण जैसे कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण, आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण की संरचनाएं और शक्ति प्रभावित हुई थी। 

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