सुप्रीम कोर्ट ने असम को इनर लाइन एरिया से बाहर रखने वाले राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगाने से इनकार किया, केंद्र से जवाब मांगा

Update: 2020-06-03 12:39 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 2019 के राष्ट्रपति के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 के तहत असम राज्य को इनर लाइन एरिया से बाहर रखा गया है।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने हालांकि याचिका पर नोटिस जारी किया और केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी है।

वरिष्ठ वकील विकास सिंह याचिकाकर्ताओं के लिए पेश हुए और सिक्किम राज्य बनाम सुरेंद्र प्रसाद शर्मा मामले पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि उक्त PO पर रोक लगाई जानी चाहिए।

सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि एक- पक्षीय रोक नहीं लगाई जाएगी क्योंकि दूसरे पक्ष को सुनना अनिवार्य है।

सीजेआई: "हम एक- पक्षीय स्टे नहीं दे सकते"

सिंह: "लेकिन एसजी यहां हैं।

सीजेआई: "हां,  लेकिन उन्हें समय चाहिए। हम नोटिस जारी करेंगे और दो सप्ताह के बाद सुनवाई करेंगे"

इसके आलोक में, सीजेआई बोबडे के नेतृत्व वाली पीठ ने मामले को दो सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया और उसके अनुसार संघ की प्रतिक्रिया मांगी।

पृष्ठभूमि:

ऑल ताई अहोम स्टूडेंट यूनियन (ATASU) ने 11 दिसंबर, 2019 को किए गए कानून के अनुकूलन (संशोधन) आदेश 2019 को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।

इसने बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (BEFR), 1873 के नागरिकता संशोधन अधिनियम 1955 और CAA, 2019 के 3 (6) , 2019 में असम के ज्यादातर हिस्सों को इनर लाइन परमिट (ILP) सिस्टम से अलग कर दिया।  जिससे बदले में असम की राज्य सरकार को राज्य में प्रवासियों को घुसपैठ की अनुमति न देकर अपने स्वदेशी लोगों की रक्षा करने में मदद की होगी।

हालांकि, राष्ट्रपति के आदेश को लागू करते हुए सरकार ने असम राज्य को धारा 6 बी (4) की प्रयोज्यता से वंचित कर दिया है, वह भी CAA, 2019 के अधिनियमित करने से एक दिन पहले।

अंतरिम में, याचिकाकर्ता ने मांग की कि लागू राष्ट्रपति आदेश के संचालन पर रोक लगाई जाए, ताकि मामले के लंबित रहने के दौरान असम राज्य की सरकार को असम में "इनर लाइन" क्षेत्र को अधिसूचित करने की स्वतंत्रता प्राप्त हो ताकि असम राज्य और उसके लोगों की नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के गंभीर प्रभाव से रक्षा हो।"

जनहित याचिका में ये भी कहा गया है कि कानून का अनुकूलन (संशोधन) आदेश 2019 जो नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 की धारा 6 बी (4) की प्रयोज्यता को प्रतिबंधित करता है, वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 29, 325, 326 और 355 व 372 (3) (ए) के सरासर उल्लंघन में है।

"केंद्र सरकार को यह अच्छी तरह से पता था कि अवैध प्रवासियों की भारी आमद के कारण असम राज्य को भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है और ऐसी स्थिति में कानून के अनुकूलन (संशोधन) आदेश 2019 को लाया जा रहा है ताकि असम राज्य को नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 की धारा 6 बी (4) की प्रयोज्यता से वंचित किया जा सके जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 29, 325, 326 और 355 का सरासर उल्लंघन है। "

यह तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 372 (2) के तहत पारित राष्ट्रपति के आदेश को किसी भी तरह से असंवैधानिक और गैरकानूनी माना जाता है, क्योंकि, 1953 के बाद अनुच्छेद 372 (2) के तहत राष्ट्रपति की शक्ति अप्रचलित हो चुकी है।

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