सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्ति नहीं होने और कोई स्वीकृत पद नहीं होने पर नियमितीकरण का दावा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि नियमितीकरण की मांग करने के लिए दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी को शुरू में एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिए और एक स्वीकृत पद होना चाहिए जिस पर वह काम कर रहा हो।
जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका से उत्पन्न एक सिविल अपील पर सुनवाई कर रही थी।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने विवादित आदेश में कहा था कि अपीलकर्ता के रोजगार को नियमित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका प्रारंभिक रोजगार कानून के सिद्धांत को पूरा नहीं करता है जैसा कि कर्नाटक राज्य के सचिव और अन्य बनाम उमादेवी और अन्य (2006) 4 एससीसी 1 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया था।
खंडपीठ एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक लेटर पेटेंट अपील अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपीलकर्ता को उसके जूनियर्स को नियमित किए जाने की तारीख से नियमित करने का निर्देश देते हुए रिट याचिका की अनुमति दी थी।
बता दें, उमा देवी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए दो शर्तों का एक सेट निर्धारित किया था। सबसे पहले, प्रारंभिक नियुक्ति सक्षम प्राधिकारी द्वारा की जानी चाहिए और दूसरी, एक स्वीकृत पद होना चाहिए जिस पर कर्मचारी काम कर रहा होगा।
वर्तमान मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को कभी भी किसी पद के विरुद्ध नियुक्त नहीं किया गया था। इसके अलावा, उनकी नियुक्ति कभी भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा नहीं की गई थी और नियमितीकरण के समय कोई पद उपलब्ध नहीं था।
कोर्ट ने एसएलपी को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि उमा देवी मामले में इस कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, अपीलकर्ता के पास नियमितीकरण के लिए कोई मामला नहीं है। इसलिए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश में हमारे हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
केस टाइटल: विभूति शंकर पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य। (Arising Out Of SLP (C ) No. 10519 of 2020)
साइटेशन : 2023 लाइव लॉ (एससी) 91