टाटा Vs सायरस मिस्त्री : टाटा संस के बाद अब रतन टाटा पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, NCLAT के फैसले को त्रुटिपूर्ण बताया

Update: 2020-01-03 07:22 GMT

टाटा संस के अपील दायर करने के बाद अब रतन टाटा खुद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में उन्होंने NCLAT के फैसले को चुनौती दी है,जिसमें उन्हें पक्षपातपूर्ण और दमनकारी कार्यों का दोषी माना था।

जानकारी के मुताबिक रतन टाटा ने अपनी याचिका में कहा है कि NCLAT ने उन्हें बिना किसी तथ्यात्मक या कानूनी आधार के पूर्वाग्रह और दमनकारी कृत्यों का दोषी ठहराया है।

"शापूरजी पालोनजी ग्रुप सिर्फ एक वित्तीय निवेशक"  

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में रतन टाटा ने कहा है कि सायरस मिस्त्री को उनकी व्यावसायिक क्षमता की वजह से चेयरमैन बनाया गया था ना कि शापूरजी पालोनजी ग्रुप के प्रतिनिधि के तौर पर। याचिका में कहा गया है कि शापूरजी पालोनजी ग्रुप सिर्फ एक वित्तीय निवेशक के अलावा और कुछ नहीं है। रतन टाटा ने NCLAT कै फैसले को गलत, त्रुटिपूर्ण और केस के रिकॉर्ड के विपरीत बताया है।

इससे पहले गुरुवार को 9 जनवरी को होने वाली टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ( TCS) की बोर्ड मीटिंग से पहले टाटा संस ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें सायरस मिस्त्री को टाटा संस के एक्जिक्यूटिव चेयरमैन के पद से हटाने को अवैध घोषित कर फिर से बहाल करने के आदेश जारी किए गए थे। इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से NCALT के फैसले पर तुरंत रोक लगाने की मांग की गई है। सोमवार 6 जनवरी को इस याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग भी की जा सकती है।

दरअसल 18 दिसंबर को सायरस मिस्त्री को नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) से बड़ी राहत मिली थी।

NCLAT ने उन्हें टाटा संस का एक्जिक्यूटिव चेयरमैन के पद पर फिर से बहाल कर दिया है। न्यायाधिकरण ने एन चंद्रा की नियुक्ति को कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में अवैध ठहराया था। NCLAT की दो जजों की बेंच ने कहा कि मिस्त्री के ख़िलाफ़ रतन टाटा ने मनमाने तरीक़े से कार्रवाई की थी और नए चेयरमैन की नियुक्ति अवैध थी। NCLAT ने यह भी कहा है कि टाटा सन्स का पब्लिक से प्राइवेट कंपनी बनना ग़ैर-क़ानूनी था. NCLAT ने फिर से पब्लिक कंपनी बनने का आदेश दिया।

सायरस मिस्त्री के पक्ष में फैसला देते हुए NCLAT ने कहा था कि मिस्त्री फिर से टाटा सन्स के चेयरमैन बनाए जाएं, उन्हें हटाना गलत था। हालांकि NCLAT ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए चार हफ्ते का समय देते हुए अपने फैसले पर रोक लगा दी थी।

दरअसल NCLT में केस हारने के बाद मिस्त्री अपीलेट ट्रिब्यूनल पहुंचे थे। NCLT ने 9 जुलाई 2018 के फैसले में कहा था कि टाटा सन्स का बोर्ड सायरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने के लिए सक्षम था। मिस्त्री को इसलिए हटाया गया क्योंकि कंपनी बोर्ड और बड़े शेयरधारकों को उन पर भरोसा नहीं रहा था। अपीलेट ट्रिब्यूनल ने जुलाई में फैसला सुरक्षित रखा था।

गौरतलब है कि अक्टूबर 2016 में सायरस मिस्त्री टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाए गए थे। दो महीने बाद मिस्त्री की ओर से सायरस इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड और स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्प ने टाटा सन्स के फैसले को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की मुंबई बेंच में चुनौती दी थी। कंपनियों की दलील थी कि मिस्त्री को हटाने का फैसला कंपनीज एक्ट के नियमों के मुताबिक नहीं था। जुलाई 2018 में NCLT ने उनके दावे को खारिज कर दिया। बाद में सायरस मिस्त्री ने खुद NCLT के फैसले के खिलाफ अपील की थी। 

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