"मामला स्थानीय प्रशासन पर छोड़ दिया जाना चाहिए" : सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 के बीच अमरनाथ यात्रा पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
"शक्तियों के पृथक्करण" के सिद्धांत के बारे में विचार व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को COVID-19 के जोखिम का हवाला देते हुए इस साल अमरनाथ यात्रा पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने कहा कि
"इस मामले में स्थानीय प्रशासन बेहतर फैसला ले सकता है।"
इस प्रकार पीठ ने मामले को स्थानीय प्रशासन द्वारा वैधानिक दिशानिर्देशों के अनुसार तय करने के लिए छोड़ दिया।
पीठ ने आदेश दिया,
" वैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए मामले को स्थानीय प्रशासन की क्षमता पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
हम देख रहे हैं कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यहां मामला लिया जाना अनुचित है। यात्रा होनी चाहिए या नहीं, इस मुद्दे को स्थानीय प्रशासन पर छोड़ देना चाहिए। निस्संदेह कोई भी निर्णय, कानून और वैधानिक प्रावधान पर आधारित होना चाहिए।"
पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पुरी प्रशासन के प्रस्तावों के आधार पर पुरी में रथ यात्रा की अनुमति देने के लिए जगन्नाथ रथ यात्रा पर प्रतिबंध लगाने के अपने पहले के आदेश को संशोधित किया।
इसका मतलब यह है कि स्थानीय प्रशासन स्थिति से निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयार है।
याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ता को संबंधित अधिकारियों के समक्ष अभ्यावेदन स्थानांतरित करने की स्वतंत्रता प्रदान की और यह माना कि प्राधिकरण जमीनी स्थिति के संबंध में इस मामले में उचित निर्णय ले सकता है।
5 जुलाई को, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अमरनाथ यात्रा को सीमित दायरे में रखते हुए प्रतिदिन 500 तीर्थयात्रियों के साथ जम्मू से सड़क मार्ग से 3,880 मीटर ऊंची गुफा मंदिर तक की अनुमति दी थी।
रिपोर्टों के अनुसार, श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) जुलाई के अंतिम सप्ताह में 15 दिन की छोटी अवधि के लिए यात्रा शुरू करने की योजना बना रहा है।
श्री अमरनाथ बर्फानी लंगर संगठन (एसएबीएलओ) की ओर से अधिवक्ता अमित पई ने यह याचिका दायर की थी। यह संगठन यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं/तीर्थयात्रियों को मुफ्त में सेवा देता है। संगठन तीर्थयात्रियों को को भोजन, आश्रय ,चिकित्सा सुविधाएं आदि प्रदान करता है। जो हर साल श्री अमरनाथ यात्रा के सुचारू संचालन को आसान बनाती हैं।
एसएबीएलओ ने दलील दी कि देश में मौजूदा स्थिति और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बने खतरे के मद्देनजर इस यात्रा को श्रद्धालुओं/ तीर्थयात्रियों के लिए रद्द करना अनिवार्य है। संगठन ने यह भी कहा कि एनडीएमए 2005 के तहत परिभाषित देश में मौजूद आपदा की स्थिति इस वर्ष की यात्रा को जनता के लिए प्रतिबंधित करना उचित मानती है।
वहीं संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 को लागू करने लिए भी यह जरूरी है।
याचिकाकर्ता-संगठन ने कहा है कि
''इस वर्ष महामारी के प्रकोप के कारण, यह दलील दी जाती है कि सारी पूजा केवल आवश्यक व्यक्तियों/ ट्रस्टियों आदि तक ही सीमित कर दी जानी चाहिए। इस यात्रा को भक्तों और तीर्थयात्रियों के लिए नहीं खोलना चाहिए ... वर्तमान याचिकाकर्ता महामारी के प्रकोप में केवल भक्तों/ तीर्थयात्रियों की भागीदारी पर एक प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है।''
याचिका में कहा गया कि यात्रा की तारीखों की घोषणा अभी नहीं की गई है और इसके बावजूद कुछ भंडारा संगठनों को 28 जून से पहले कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने और 3 जुलाई से सेवाएं (सेवा) शुरू करने की अनुमति दे दी गई है, जिसके बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
हालांकि 22 अप्रैल को इस यात्रा को श्राइन बोर्ड द्वारा रद्द कर दिया गया था परंतु उक्त यात्रा को रद्द करने के कुछ घंटों के भीतर ही इस घोषणा को वापस ले लिया गया था।
संगठन ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह वर्तमान परिस्थितियों में घातक हो सकता है,चूंकि इस समय ''भारत में COVID19 के मामलों की संख्या लगभग 5.5 लाख है'' और ''तीर्थयात्रियों के लिए यात्रा रद्द करने की घोषण को वापिस लेने के लिए भी कोई औचित्य नहीं बताया गया है।'' इसके अलावा यह भी दलील दी गई है कि वर्तमान में देश में लागू होने वाले सोशल डिस्टेंसिग के मानदंडों और मानकों को ध्यान में रखते हुए आगे भी प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। वहीं यात्रा को भी बंद करने की आवश्यकता है क्योंकि परिवहन और आवास सुविधाओं की अनुपस्थिति तीर्थयात्रियों को भारी कठिनाई में डाल देगी।