J&K: सुरक्षा बलों के मानवाधिकार को लेकर केंद्र व NHRC को नोटिस, सैन्यकर्मियों की बेटियों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाया कदम
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र, जम्मू-कश्मीर राज्य और NHRC से जवाब मांगा है कि क्या उग्रवाद प्रभावित राज्य में आतंकवादियों से निपटने के दौरान सेनाकर्मियों को बेलगाम भीड़ की पत्थरबाजी व हमले से बचाने के लिए एक नीति तैयार की जा सकती है?
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्रीय गृह और रक्षा मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। ये नोटिस 2 छात्राओं की याचिका पर जारी की गयी है। इनमें काजल मिश्रा, एक सेवानिवृत्त सूबेदार अनुज कुमार मिश्रा की बेटी हैं जबकि प्रीति केदार गोखले सेना के सेवारत लेफ्टिनेंट कर्नल केदार गोखले की बेटी हैं। 4 सप्ताह के बाद इस मामले पर सुनवाई होने की उम्मीद है।
वकील नीला गोखले के माध्यम से दायर इस याचिका में शीर्ष अदालत से आग्रह किया गया है कि वो उत्तरदाताओं को निर्देशित करे कि वे अपने सैन्य कर्तव्य का निर्वहन करने के दौरान अनियंत्रित भीड़ या व्यक्तियों द्वारा सशस्त्र बलों के कर्मियों को बाधित करने/उन पर हमला करने से उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक नीति तैयार करें क्योंकि ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता) के तहत सही गारंटी है।
याचिका में कहा गया है कि आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों खासतौर पर जम्मू और कश्मीर के शोपियां में अनियंत्रित भीड़ द्वारा सैनिकों और सेना के काफिले पर पथराव की घटनाएं परेशान करने वाली हैं। क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में भारतीय सेना को पथराव करने वालों का शिकार होना पड़ता है।
याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2015 में सेना के 641 जवान पत्थरबाजी के चलते घायल हुए थे जबकि पत्थर फेंकने के कारण वर्ष 2016 में 9,235 और वर्ष 2017 में लगभग 1,690 सेना के जवान घायल हुए थे। भीड़ द्वारा पत्थर फेंकने से निपटने के लिए भारत या जम्मू कश्मीर राज्य में कोई कानून मौजूद नहीं है। विभिन्न उन्नत देशों ने इससे निपटने के लिए कड़े कदम उठाए है।
अमेरिका में ऐसे मामलों में आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है जबकि इजरायल में 10 साल, न्यूजीलैंड में 14 साल, ऑस्ट्रेलिया में 5 साल, तुर्की में 5 साल और इंग्लैंड में 3.5 साल की सजा का प्रावधान है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार आत्मरक्षा में अगर सैनिक कोई कार्रवाई करते हैं तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती हैं।
"वास्तव में यह नोट करना चौंकाने वाला है कि जम्मू-कश्मीर राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री ने विधान सभा में घोषित किया कि पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज 9760 एफआईआर को वापस लिया जाएगा क्योंकि यह एफआईआर उन लोगों के खिलाफ दर्ज दी जिन्होंने पहली बार अपराध किया था," याचिका में कहा गया है।
याचिका में आगे कहा गया है, "यह ध्यान रखना उचित है कि सबसे पहले, राज्य इसके हकदार नहीं है कि वो एक बार दर्ज एफआईआर को वापस ले ले। Cr.P.C/RPC में प्रदान की गई विधि की उचित प्रक्रिया के तहत ही ऐसा हो सकता है। दूसरी बात, शिकायतकर्ता या अपराध का शिकार होने वाले सैन्यकर्मी ही उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का हकदार है और यदि इस तरह सुरक्षा बलों पर हमला करने वालों के ऊपर से केस वापस लिए जाते हैं तो ये सैन्यकर्मियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है।