जम्मू और कश्मीर में बच्चों की अवैध हिरासत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

Update: 2019-09-14 14:29 GMT

जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने के बाद और राज्य के विभाजन के मद्देनजर जम्मू और कश्मीर में बच्चों की अवैध हिरासत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है।

यह याचिका प्रतिष्ठित बाल अधिकार विशेषज्ञ एनाक्षी गांगुली और राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग (एनसीपीसीआर) की पहली अध्यक्षा प्रोफेसर शांता सिन्हा द्वारा दायर की गई है।

कुछ मीडिया रिपोर्ट में जम्मू और कश्मीर में बच्चों के अवैध निरोध से संबंधित तथ्य सामने आए थे। इस जनहित याचिका में इन्हीं घटनाओं पर उच्चतम न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया गया है और मामले में तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है।

याचिकाकर्ता यह कहते हैं कि बच्चों के लिए कुछ विशेष रिपोर्ट हैं, जिनमें अधिकारों के उल्लंघन का वर्णन किया गया है, जिसमें जीवन और स्वतंत्रता की हानि शामिल है। ये रिपोर्ट इतनी गंभीर और संवेदंशील हैं कि बच्चों की स्थिति पर तुरंत न्यायिक समीक्षा करना आवश्यक है।

याचिकाकर्ताओं ने दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर चिंता जताई है, पहला सुरक्षा बलों द्वारा युवा लड़कों के अवैध (यदि अस्थायी) निरोध (और कुछ मामलों में पिटाई) शामिल हैं। दूसरा सुरक्षा बलों द्वारा जानबूझकर या आकस्मिक कार्रवाई से बच्चों की गंभीर चोट और मौत की चिंता है।

व्यापक समाचार रिपोर्टों के आधार पर यह कहा गया है कि पंपोर, अवंतीपुरा, त्राल जैसे स्थानों में बड़ी संख्या में नाबालिगों और युवाओं को सुरक्षा बलों द्वारा उठाया गया है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एक संवैधानिक लोकतंत्र में और विशेष रूप से इन असाधारण परिस्थितियों में यह अनिवार्य है कि सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करे कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ कोई ज्यादती न हो, जो ऐसी तनावपूर्ण परिस्थितियों में सबसे अधिक असुरक्षित हैं।

अधिवक्ता सुमिता हजारिका के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि अगर बच्चा एक संभावित 'पत्थरबाज' है, तो भी उसे किसी न्यायिक प्राधिकारी के लिखित आदेश के बिना हिरासत में नहीं लेना चाहिए। याचिका में बच्चों के साथ हुई छेड़छाड़ और चोटों से संबंधित घटनाओं पर भी प्रकाश डाला गया है।

यह प्रस्तुत किया गया है कि आज कश्मीर की स्थिति बच्चों की भलाई के दृष्टिकोण से अत्यावश्यक और परेशान करने वाली है। यह उन रिपोर्टों से प्रकट होता है कि राज्य बच्चों के संबंध में और संवैधानिक सिद्धांतों और अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार अधिकारों के साथ दोनों विशिष्ट कानूनों का उल्लंघन कर रहा है।



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