हरेन पंड्या हत्याकांड : सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की पुनर्विचार याचिका खारिज की, सजा बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पंड्या की हत्या के मामले में दस दोषियों की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है।
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने आदेश में कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं पर गौर करने के बाद ये पाया है कि पुराने फैसले में कोई त्रुटि नहीं है और इसलिए उस पर फिर से विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था
दरअसल पांच जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी 12 आरोपियों को दोषी करार देकर सजा को बहाल कर दिया था। इनमें 9 को आजीवन कारावास सुनाई गई जबकि शेष को पोटा के तहत विभिन्न सजा हुई।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीबीआई और गुजरात सरकार द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाया था जिसमें 2003 में राज्य के पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या की हत्या के आरोपों का सामना कर रहे 12 व्यक्तियों को बरी करने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
वहीं पीठ ने गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा दायर उस ताजा जनहित याचिका को खारिज कर दिया और 50000 रुपये का जुर्माना लगाया था जिसमें अदालत की निगरानी में हत्या की नए सिरे से जांच की मांग की गई थी।
पंड्या गुजरात में तत्कालीन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री थे। 26 मार्च, 2003 को अहमदाबाद में लॉ गार्डन के पास सुबह की सैर के दौरान उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
सीबीआई के अनुसार राज्य में 2002 के सांप्रदायिक दंगों का बदला लेने के लिए उनकी हत्या कर दी गई थी। सीबीआई और राज्य पुलिस ने 29 अगस्त, 2011 को गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा आरोपियों को दोषमुक्त करार देकर बरी किए जाने पर सवाल उठाते हुए अपील दायर की थी।
ट्रायल कोर्ट ने जून 2007 में पंड्या की हत्या के लिए 12 लोगों को दोषी ठहराया था।लेकिन 2011 में हाई कोर्ट ने सभी को बरी दिया। गुजरात हाई कोर्ट ने ठीक से जांच नहीं करने पर सीबाआई की आलोचना करते हुए कहा था कि वर्तमान मामले के रिकार्ड से एक चीज स्पष्ट रूप से निकलकर सामने आती है कि हरेन पंड्या हत्या के मामले की ठीक से जांच नहीं की गई है और इसमें अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
संबंधित जांच अधिकारियों को उनकी अयोग्यता के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए क्योंकि इससे अन्याय, कई व्यक्तियों का उत्पीड़न और सार्वजनिक संसाधनों और न्यायालयों के सार्वजनिक समय की भारी बर्बादी होती है। शीर्ष अदालत ने इस साल 31 जनवरी कोमामले में अपील पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने 5 जनवरी 2012 को उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सीबीआई और राज्य द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार किया था।
वहीं मुख्य आरोपी असगर अली के उस बयान के आधार पर विशेष पोटा अदालत द्वारा एक बड़ी साजिश के लिए आरोपियों को दोषी ठहराया गया था जिसमें उसने माना था कि 2002 के दंगों का बदला लेने के लिए गुजरात के वीएचपी प्रमुखऔर अन्य हिंदू नेताओं पर हमला करने की योजना बनाई गई थी।
इस मामले में अन्य दोषी हैं - मोहम्मद रउफ, मोहम्मद परवेज अब्दुल कयूम शेख, परवेज खान पठान उर्फ अतहर परवेज, मोहम्मद फारूक उर्फ हाजी फारूक, शाहनवाज गांधी, कलमा अहमद उर्फ कलीमुल्लाह, रेहान पुत्तावाला, मोहम्मद रियाज सरेशवाला, अनीज माचेलिस मोहम्मद सैफुद्दीन।
सीबीआई के अनुसार पंड्या की हत्या से पहले दोषियों ने 11 मार्च, 2003 को एक स्थानीय वीएचपी नेता जगदीश तिवारी पर जानलेवा हमला किया था। एजेंसी ने दावा किया था कि ये दो घटनाएं गोधरा के बाद के दंगों के बाद लोगों में आतंक फैलाने की एक ही साजिश का हिस्सा थीं।
एजेंसी ने दावा किया था कि फरार आरोपी रसूल पारती और मुफ्ती सूफियान पतंगिया द्वारा आरोपियों को पाकिस्तान भेजा गया था और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर प्रशिक्षित किया गया था।इस मामले की जांच पहले राज्य पुलिस ने की थी लेकिन बाद में इसे सीबीआई को सौंप दिया गया था।