सीपीसी की धारा 92 के तहत मुकदमे के पंजीकरण के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक

“सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 92 के तहत दायर किये गये प्रत्येक मुकदमे को उचित रूप से पंजीकृत होने का दावा किये जाने से पहले उसके लिए अनुमति आवश्यक है।”

Update: 2019-09-23 02:10 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 92 के तहत दायर किये गये प्रत्येक मुकदमे को उचित रूप से पंजीकृत होने का दावा किये जाने से पहले उसके लिए अनुमति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने सीपीसी की धारा 92 का उल्लेख किया और कहा कि प्रावधान यह है कि कोई मुकदमा या तो महाधिवक्ता की ओर से दायर किया जाना चाहिए अथवा ट्रस्ट में रुचि रखने वाले दो या तीन व्यक्तिय मुकादमा दायर करें।

यह था मामला

इस मामले में कुछ लोगों ने गुरुद्वारा के उचित प्रबंधन के लिए सीपीसी की धारा 92 के तहत एक योजना शुरू करने की अनुमति मांगी थी। यद्यपि सीपीसी की धारा 92 के तहत मामला शुरू करने से पहले अदालत की अनुमति के लिए आवेदन दिया गया था, लेकिन उस आवेदन पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया।

प्रतिवादी ने इस पहलू की अनदेखी करके मुकदमा लड़ा। निचली अदालत ने साक्ष्य के आधार पर गुरुद्वारा प्रबंधन के लिए समुचित योजना तैयार की। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील खारिज कर दी।

भूपिन्दर सिंह बनाम जोगिन्दर सिंह (मृत) मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रतिवादी की दलील थी कि चूंकि अनुमति संबंधी आवेदन पर कोई आदेश नहीं जारी किया गया था, इसलिए इस मामले की समूची सुनवाई अनुचित है और इसे लेकर जारी आदेश तथा अपील को निरस्त करने की जरूरत है।

पीठ ने सीपीसी की धारा 92 का उल्लेख करते हुए कहा कि इस प्रावधान के तहत कोई मुकदमा या तो महाधिवक्ता की ओर से दायर किया जाना चाहिए अथवा ट्रस्ट में रुचि रखने वाले दो या तीन व्यक्तियों द्वारा। साथ ही इसके लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता भी होती है।

अदालत ने कहा,

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीपीसी की धारा 92 के तहत मुकदमे की सुनवाई से पहले उसकी अनुमति लेना पूर्व निर्धारित आवश्यकता है। इस अदालत ने अनेक याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अपने कई फैसलों में यह व्यवस्था दी है कि सीपीसी की धारा 92 के तहत मुकदमे की अनुमति के लिए किए गए आवेदन पर कोई आदेश सुनाने से पहले संबंधित पक्ष को नोटिस जारी किया जाना चाहिए। हालांकि कई मामलों में आपात स्थिति में ऐसा नहीं भी किया जाता है और कोर्ट बिना नोटिस जारी किए ही इसकी अनुमति दे सकता है, लेकिन प्रतिवादी को अनुमति आदेश निरस्त करने के लिए अपील करने का पूरा हक है।"

अनुमति मिली हुई मान लेने की हाईकोर्ट की अवधारणा को खारिज करते हुए बेंच ने कहा,

"हम अनुमति आवेदन को स्वीकृत मान लेने के हाईकोर्ट के फैसले को मानने के पक्ष में नहीं हैं। इस तरह के मामले में ऐसी धारणा कायम नहीं की जा सकती। हमारा सुविचारित मत है कि सीपीसी की धारा 92 के तहत दायर किये गये प्रत्येक मुकदमे को उचित रूप से पंजीकृत होने का दावा किये जाने से पहले उसके लिए अनुमति आवश्यक है।"

यद्यपि बेंच ने पाया कि प्रतिवादी कानूनी तौर पर सही है कि अनुमति लिये बगैर इस तरह का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, लेकिन इसने यह कहते हुए अपील खारिज कर दी कि प्रतिवादी ने निचली अदालत में यह मुद्दा उस वक्त नहीं उठाया था। 


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