दूषित भूजल पी रहे लोगों तक सरकार को पोर्टेबल पेयजल पहुंचाना चाहिए : एनजीटी

Update: 2019-09-16 03:31 GMT

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की मुख्य पीठ ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह अलग-अलग राज्यों में दूषित भूजल से प्रभावित लोगों को पोर्टेबल पीने योग्य पेयजल उपलब्ध कराने की दिशा में कदम उठाए। एनजीटी ने कहा कि जो लोग दूषित जल से प्रभावित हैं उन्हें सरकार को पोर्टेबल (पानी को किसी कंटेनर से) पेयजल पहुंचाना चाहिए।

एक अनुमान के अनुसार भूजल में आर्सेनिक की अधिक मात्रा होने के कारण अलग-अलग राज्यों में एक करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हो रहे हैं। एनजीटी ने केंद्र सरकार से स्थितियों में सुधार करने के लिए रणनीतियों पर फिर से काम करने और एक निश्चित समयसीमा में काम करने के लिए कहा है।

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने कहा कि-

"देश के एक करोड़ से ज्यादा लोग आर्सेनिक से दूषित पानी से प्रभावित हैं, जो कैंसर का कारण है, उक्त आबादी को पोर्टेबल पीने योग्य जल उपलब्ध कराने का मुद्दा एक संवैधानिक कर्तव्य है, जिसके लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकार, दोनों को ही हर संभव प्रयास करने होंगे। यह समस्या कई राज्यों में है, इसलिए केंद्र सरकार को इस मामले में देश की आबादी के एक बड़े हिस्से के स्वास्थ्य व सुरक्षा को देखते हुए नेतृत्व करना होगा।

पीठ इस मामले में श्रीमती सुनीता पांडेय व अन्य की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इसी मामले में जल शक्ति मंत्रालय की तरफ से दायर एक रिपोर्ट को देखने के बाद पीठ ने कहा "रिपोर्ट को देखने के बाद पाया गया है कि भूजल प्रबंधन के विनियमन और नियंत्रण की विषय सूची I 12 की प्रविष्टि 13 द्वारा कवर की गई है क्योंकि ये विषय अंतर्राष्ट्रीय संधियों द्वारा कवर किए गए हैं। इसलिए इन विषय से निपटने के लिए केंद्रीय कानून या प्रशासनिक कार्रवाई भी जरूरी है।''

पीठ ने इस मामले में डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया,जिसमें आर्सेनिक को एक प्रमुख स्वास्थ्य चिंता के रूप में पहचाना गया है। सतत विकास के लिए वर्ष 2030 के नए एजेंडे के तहत सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवा का संकेतक इस बात का आह्वान करता है कि आबादी पर इस बात के लिए नजर रखी जाए कि उनको ऐसा पीने योग्य पानी मिले जो मल संदूषण और खतरनाकरासायनिक,जिसमें आर्सेनिक भी शामिल है,से मुक्त हो।

पीठ ने कहा  "इस समय जो योजनाएं बनाई गई हैं, उन पर पुन-विचार करने की जरूरत है, क्योंकि इनमें समयसीमा निर्धारित नहीं है, जबकि मामले में तात्कालिकता को देखते हुए रणनीतियों को एक उपयुक्त तंत्र द्वारा फिर से तैयार करने की आवश्यकता है। संबंधित राज्यों पर इस बात का दबाव बनाया जा सकता है कि वह कार्य योजनाओं की समयसीमा को कम करें और तुरंत पीने के पानी की सप्लाई के लिए व्यवहारिक कदम उठाएं या उन पर विचार करें।

इस मामले में केंद्र सरकार को युद्धस्तर पर निगरानी करनी चाहिए ताकि पीने के पानी तक सबकी पहुंच वाले मौलिक अधिकार को लागू करवाया जा सके,जो कि भारतीय संविधान के तहत मिले ''जीने के अधिकार'' का एक हिस्सा है।

पूर्व में पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय और जल संसाधन,नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय की तरफ से दायर एक हलफनामे के अनुसार सात राज्यों में रह रही 1.3 करोड़ की आबादी दूषित भूजल से प्रभावित है, जो असम, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, पंजाब,उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में रहती है। हलफनामे के अनुसार जल आपूर्ति राज्य की जिम्मेदारी थी, लेकिन केंद्रीय मंत्रालय ने वित्तिय और तकनीकी सहायता से राज्यों के इन प्रयास में सहायता की है। 



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