लोक अदालत में किसी विवाद को सुलझाने के बाद उस विवाद पर एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती,पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Update: 2019-08-20 08:51 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि लोक अदालत में किसी विवाद को सुलझा लिए जाने पर उस विवाद को लेकर एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती।

दरअसल सलीम अहमद के घर में लगा बिजली का मीटर सही रीडिंग दर्ज नहीं कर रहा था और यह देखने के बाद BSES ने बिजली की खपत के संबंध में एक आकलन किया और सलीम को 97,786 रुपये की बिजली चोरी का बिल भेजा। बाद में इस मामले को लोक अदालत में भेजा गया। हालांकि मूल मांग 9,7,786 रुपये की थी लेकिन BSES द्वारा किए गए दावे की पूर्ण और अंतिम संतुष्टि में विवाद को 83,120 रुपये पर सुलझा लिया गया।

लेकिन केस के निपटारे और भुगतान प्राप्त करने के बाद भी BSES ने सलीम के खिलाफ विद्युत अधिनियम की धारा 135 के तहत एफआईआर दर्ज करा दी। इसके बाद हाईकोर्ट ने सलीम की एफआईआर को रद्द करने की मांग की याचिका को खारिज कर दिया।

अपील में न्यायमूर्ति अभय मनोहर सपरे न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने यह कहा कि बकाया राशि की वसूली के संबंध में विवाद को अंततः लोक अदालत के दौरान पक्षकारों के बीच सुलझा लिया गया, जिसके परिणामस्वरूप अवार्ड पारित किया गया। पूरे दावे की अंतिम संतुष्टि के बाद BSES द्वारा एफआईआर दर्ज करने का न तो कोई भी अवसर था और न ही कोई आधार था, जो एक अवार्ड का विषय था।

पीठ ने कहा:

ऐसे मामले में पक्षकारों का उपाय केवल अवार्ड को उपयुक्त फोरम में चुनौती देने के लिए था। .. हमारी राय में, एक अवार्ड को पारित करने का प्रभाव यह था कि BSES द्वारा की गई मांग के संबंध में विवाद का दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्वक निपटारा किया गया था ताकि उनके बीच कोई विवाद जीवित न रहे।

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि अवार्ड में निर्धारित शर्तें स्पष्ट रूप से यह दर्ज करती हैं कि विवाद को पूरी तरह से सुलझा लिया गया है और विवाद में की गई मांग को पूरा किया गया है।

हमारे विचार में यदि BSES विद्युत अधिनियम के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का इच्छुक था तो या तो उसे लोक अदालत के माध्यम से मामले का निपटारा नहीं करना चाहिए था या समझौता करते समय अवार्ड में एक शर्त रखनी चाहिए थी जिसमें विचाराधीन विवाद के बावजूद एफआईआर दर्ज करने का अधिकार बरकरार रहेगा। हालांकि यह नहीं किया गया था।

एफआईआर का हवाला देते हुए पीठ ने यह कहा कि लोक अदालत द्वारा अवार्ड पारित करने के बाद एफआईआर दर्ज करना पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और गैरकानूनी था और यह अवार्ड की शर्तों के खिलाफ था। साथ ही मांग से उत्पन्न होने वाली कार्रवाई के किसी भी कारण के लिए इसकी अनुमति नहीं थी।  



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