जिला जज द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट को अपमानित करने का मुद्दा मुख्य न्यायाधीश के पास पहुंचा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट को अपमानित करने के एक जिला जज के प्रयास पर कड़ा रुख अपनाया है। इस जज ने हाईकोर्ट और उसके जजों के कार्य करने के तौर-तरीकों पर टिपण्णी की थी।
न्यायमूर्ति अनिल कुमार और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की बेंच ने कहा,
"न्यायिक अधिकारी मनोज कुमार शुक्ला ने अदालत कक्ष में जिस तरह का हंगामा किया उसकी कोई जरूरत नहीं थी और यह इस अदालत के खिलाफ अनादर दिखाना था जिसकी उम्मीद एक न्यायिक अधिकारी से नहीं की जा सकती है।
बार की मौजूदगी में न्यायिक अधिकारी का व्यवहार न केवल अनादर दिखाना था, बल्कि यह अदालत की खराब तस्वीर पेश करने जैसा था। हमारे संवैधानिक व्यवस्था में अदालत में दर्जा बनाया गया है, ताकि न्याय दिलाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। दर्जे की इस व्यवस्था के तहत अगर निचली अदालत का कोई जज न्यायिक अधिकारी से जिस तरह के व्यवहार की उम्मीद की जाती है वैसा करने में विफल रहता है तो इससे न केवल अदालत की गरिमा को नुकसान पहुंचता है बल्कि यह न्याय दिलाने की व्यवस्था में बड़ी हकदारी रखनेवाले मुकद्मादारों के विश्वास को भी चोट पहुंचाता है।"
इस घटना की पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने सुल्तानपुर के पारिवारिक अदालत के प्रधान जज को बुलाकर यह पूछा था कि जब मुकदमे के पक्षकार मुसलमान हैं तो उन्होंने किस तरह से हिन्दू विवाह क़ानून के तहत आदेश पास किया।
जिला जज मनोज कुमार शुक्ला ने इस बारे में अदालत को कहा कि इस मामले की सुनवाई उनके पूर्ववर्ती ने की और इस मामले में आदेश सुनाने के समय वह जिला सुल्तानपुर के मुख्य जज नहीं थे।
यह पूछे जाने पर कि उनके पूर्ववर्ती जज कौन हैं जिन्होंने इस तरह का गलत आदेश पास किया, शुक्ला नाराज हो गए और हाईकोर्ट पर दोष मढने लगे कि उनको नाहक ही इस मामले में बुलाया गया है। इसके बावजूद कि उन्हें चेतावनी दी गई कि उनके इस व्यवहार के गलत परिणाम हो सकते हैं, वे चिल्लाते रहे और हाईकोर्ट के कार्यकलाप पर प्रश्न चिह्न उठाया।
शुक्ला ने तत्कालीन प्रधान जज के इस गलत आदेश का बचाव किया और कहा कि एक न्यायिक अधिकारी इस तरह की गलती इसलिए करता है क्योंकि अदालत में मुकदमों की भीड़ है और फॅमिली कोर्ट में स्टेनो के रूप में काम करने वालों की कमी है।
इस पर अदालत ने कहा, अगर काम बहुत है और बुनियादी सुविधाएं भी कम हैं, इसके बावजूद यह देखना जज का कर्तव्य है कि जो आदेश वह पास कर रहा है वह सही क़ानून के तहत है कि नहीं।"
अदालत ने कहा कि अदालत के कक्ष में न्यायिक अधिकारी का व्यववहार ऐसा था कि बार के सदस्यों को भी बुरा लगा और उन्होंने उनके खिला कार्रवाई करने की बात कही। हालांकि, पीठ ने कहा कि सर्वाधिक उचित यह होगा कि न्यायिक अधिकारी के व्यवहार के बारे में मुख्य न्यायाधीश को जानकारी दी जाए और अधिकारी के खिलाफ क्या कार्रवाई हो यह उन्हीं पर छोड़ दिया जाए।
"इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज देना हमें ज्यादा उचित लग रहा है जिन्हें एक न्यायिक अधिकारी के दुर्व्यवहार के बारे में बताया जाना जरूरी है जो कि जिला जज के रैंक का है, इसलिए हम वरिष्ठ रजिस्ट्रार को निर्देश देते हिं कि वह इस आदेश को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उचित कार्रवाई के लिए रखें।"
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