सामान्य और आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों का अलग-अलग साक्षात्कार करना अवैध, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सामान्य और आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग साक्षात्कार आयोजित करने की प्रक्रिया पूरी तरह से अवैध है।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह बात उस समय कही, जब उन्हें पता चला कि इंटरनेशनल सेंटर फॉर डिस्टेंस एजुकेशन एंड ओपन लर्निंग (अंतरराष्ट्रीय दूरस्थ शिक्षा केंद्र और मुक्त शिक्षा), शिमला के शिक्षा विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के संबंध में अलग-अलग साक्षात्कार आयोजित किए गए थे।
पीठ एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसे ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षित पद पर नियुक्त किया गया था। इस व्यक्ति ने उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ यह अपील दायर की थी, जिसमें एक उम्मीदवार द्वारा उसकी नियुक्ति को चुनौती देने के लिए दायर रिट याचिका को स्वीकार कर लिया गया था।
प्रदीप सिंह देहल बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य में, कोर्ट ने कहा कि-
"हम पाते हैं कि सामान्य श्रेणी और ओबीसी श्रेणी के तहत सहायक प्रोफेसर के पदों के लिए अलग-अलग साक्षात्कार आयोजित करने की प्रक्रिया पूरी तरह से अवैध है। हालांकि, किसी भी पक्ष ने इसके बारे में कोई विवाद नहीं उठाया है, लेकिन चूंकि यह स्वाभाविक रूप से दोषपूर्ण है, इसलिए हम ऐसा करने के लिए विवश हैं। प्रत्येक व्यक्ति एक सामान्य श्रेणी का उम्मीदवार है। आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों या ऐसे अन्य वर्ग को दिया जाता है, जो कानून के तहत मान्य है। यह इंद्रा साहनी व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य' केस से शुरू होने वाला न्यायालय का एक सुसंगत दृष्टिकोण है कि यदि कोई आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार मेरिट में है तो उसे सामान्य श्रेणी की सीट मिल जाएगी।"
विकास सांखला बनाम विकास कुमार अग्रवाल का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार को अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में माना जा सकता है, बशर्ते ऐसे उम्मीदवार ने किसी अन्य विशेष रियायत का लाभ नहीं उठाया हो।
पीठ ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित चयन प्रक्रिया को उचित और तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है। पीठ ने इस मामले में विश्वविद्यालय को एक विशेषज्ञ समिति का गठन करके चयन प्रक्रिया की फिर से जांच कराने का निर्देश दिया है।