CBI Vs WB : सुप्रीम कोर्ट ने CBI की स्टेटस रिपोर्ट को गंभीर बताया,IPS राजीव कुमार से मांगा जवाब
सीबीआई बनाम पश्चिम बंगाल सरकार मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ के आधार पर सीबीआई द्वारा दाखिल सीलबंद स्टेटस रिपोर्ट को बहुत ही गंभीर बताया है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान ये कहते हुए सीबीआई को निर्देश दिया है कि वो 7 दिनों के भीतर एक अलग से अर्जी दाखिल करे।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सीबीआई से कहा, "हम स्टेटस रिपोर्ट से गुजरे हैं। आपने (CBI) स्टेटस रिपोर्ट में प्रार्थना की है। यदि आप इसे एक अलग अर्जी बनाना चाहते हैं और स्टेटस रिपोर्ट की कुछ सामग्री हमे देना चाहते है तो दे सकते हैं। लेकिन यह बहुत गंभीर है तो हम उन्हें (राजीव कुमार) को मौका दिए बिना अपने आप कोई कार्रवाई नहीं कर सकते।"
पीठ ने कहा कि 7 दिनों में सीबीआई की अर्जी दाखिल होने के 10 दिनों के भीतर राजीव कुमार इस पर अपना जवाब दाखिल करेंगे। पीठ ने कहा, "हम दोनों पक्षों को सुनने के बाद आरोपों और जवाबी आरोपों का निर्धारण करेंगे।"
वहीं पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के उस अनुरोध को भी ठुकरा दिया जिसमें राज्य के DGP और मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना कार्यवाही को खत्म करने को कहा गया था।
चीफ जस्टिस ने कहा, "अवमानना पर विचार करते समय अगर कुछ गंभीर बातें हमारे संज्ञान में आती हैं और हमे लगता है कि उन पर कार्रवाई करनी चाहिए तो क्या हमें अपनी आँखें बंद कर लेनी चाहिए?"
राजीव कुमार पर सीबीआई ने लगाया था गंभीर आरोप
इससे पहले 27 फरवरी को पीठ ने सीबीआई निदेशक को उन आरोपों पर 2 सप्ताह में हलफनामा दाखिल कर तथ्य प्रस्तुत करने को कहा है जिसमें कहा गया है कि कोलकाता पुलिस के पूर्व आयुक्त राजीव कुमार ने CBI को सौंपने से पहले शारदा चिट फंड घोटाले के कॉल रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की थी।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि अगर यह सच है कि राजीव कुमार की एसआईटी द्वारा एकत्र किए गए कॉल डेटा रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की गई है तो यह एक गंभीर अपराध है और यह कानून से छेड़छाड़ का मामला है।
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया था कि सीबीआई को पता चला है कि राजीव कुमार के नेतृत्व वाली एसआईटी द्वारा सीडीआर से मिटाए गए विवरणों में महत्वपूर्ण व्यक्तियों से संबंधित फोन नंबर हैं। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि सीबीआई ने राजीव कुमार द्वारा दिए गए कॉल डेटा रिकॉर्ड का मिलान सर्विस प्रोवाइडर के डेटा से की है।
पश्चिम बंगाल सरकार कर चुकी है अपना बचाव
इस बीच सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार और उसकी पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के उन आरोपों का खंडन किया जिसमे कहा गया था कि उन्होंने शारदा चिटफंड घोटाला मामलों की जांच में बाधा डाली है।
राज्य के मुख्य सचिव मलय कुमार डे, डीजीपी वीरेंद्र कुमार और कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग हलफनामे दायर किए हैं। तीनों ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य पुलिस ने किसी भी समय जांच में बाधा नहीं डाली और न ही किसी अधिकारी ने सीबीआई को सहयोग से इनकार किया है।
अधिकारियों ने अवमानना याचिका का भी विरोध किया जिसमें सीबीआई ने आरोप लगाया है कि वे सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं और शीर्ष अदालत के जांच के लिए विभिन्न आदेशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं।
उन्होंने यह भी दावा किया है कि कोई भी पुलिस अधिकारी उस 'धरना मंच' पर नहीं गया, जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई कार्रवाई का विरोध करने के लिए बैठी थीं। डीजीपी और कुमार ने कहा कि कोई भी पुलिस अधिकारी वर्दी में या किसी भी समय पर कभी भी बैनर्जी के साथ धरने में शामिल नहीं हुआ। वो तो बस मुख्यमंत्री की सुरक्षा कर रहे थे जिन्हें जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है।
इससे पहले 5 फरवरी को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को सीबीआई जांच में शामिल होने और सहयोग करने को कहा था। पीठ ने साफ किया था कि सीबीआई राजीव कुमार को गिरफ्तार नहीं कर सकती। वहीं पीठ ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, डीजीपी और कोलकाता के पुलिस आयुक्त को अवमानना का नोटिस जारी कर 18 फरवरी तक उनकी ओर से जवाब मांगा था।
इस दौरान सीबीआई की ओर से पेश अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था कि चिट फंड मामले की जांच कर रही SIT के चीफ राजीव कुमार लगातार सीबीआई जांच से बच रहे हैं। उन्होंने मामले में कॉल रिकार्ड आदि सबूतों से छेड़छाड़ की है और छिपाए हैं। जब सीबीआई पूछताछ करने गई तो पुलिस ने अफसरों को बंधक बना लिया।
वहीं राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि सीबीआई सिर्फ पुलिस आयुक्त को परेशान करना चाहती है। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा उनके दावे को साबित करने के लिए कोई सबूत मौजूद नहीं है कि पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य पुलिस चिट फंड मामलों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को नष्ट करने के लिए काम कर रही है।
पीठ ने कहा था कि अगर ऐसा कोई तथ्य है तो उसे सुप्रीम कोर्ट के सामने लाया जाए। अगर कहीं से भी दूर-दूर तक ये साबित होगा कि छेड़छाड़ की जा रही है तो कोर्ट इसके लिए बड़े भारी आदेश जारी करेगा।
दरअसल 9 फरवरी को कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ करने गए सीबीआई अधिकारियों को हिरासत में लिया गया और बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। सीबीआई के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया था कि कोलकाता में एजेंसी के अधिकारियों के साथ जो हुआ वो एक "असाधारण स्थिति" थी।
इसके बाद सीबीआई ने पुलिस आयुक्त के आत्मसमर्पण की मांग की और पश्चिम बंगाल सरकार और पुलिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए भी याचिका दायर की है।