दोषसिद्धि के बाद किए गए समझौते पर भरोसा नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी की एसएलपी खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया।
आरोपी को आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी ठहराया गया था। उसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया था कि उसके और शिकायतकर्ता/पीड़िता के बीच एक समझौता किया गया है।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओक की पीठ ने कहा,
"हमें इस तरह के समझौते को कोई श्रेय देने का कोई कारण नहीं दिखता, जो हाईकोर्ट द्वारा सजा की पुष्टि के बाद किया जा रहा है।"
पीड़िता की मां द्वारा दर्ज एफआईआर (प्राथमिकी) में दर्ज अभियोजन का मामला इस प्रकार थाः पीड़िता, जिसकी उम्र 10 वर्ष है, वह पास की किराना दुकान पर जा रही थी। रास्ते में आरोपी उससे मिला और उसके लिए केक खरीदने के लिए 10 रुपये का नोट दिया। जब उसने केक खरीदा तो उसने उसे अपने घर बुलाया और दोनों ने केक खाया। इसके बाद वह उसके स्तन को दबाने लगा। इसका पीड़िता ने विरोध किया। फिर उसने उसकी पैंटी उतारने की कोशिश की। पीड़िता ने फौरन बड़ा शोर मचाया और घर के लिए निकल गई। घर पहुंचकर उसने अपनी मां को सारी बात बताई। पीड़िता की मां ने मामले की पुलिस को लिखित शिकायत कर प्राथमिकी दर्ज कराई। निचली अदालत ने उसे आईपीसी की धारा 354 के तहत दंडनीय अपराध के आरोप का दोषी पाया और एक साल की आरआई व 5,000/- के जुर्माना व डिफ़ॉल्ट शर्त के साथ सजा सुनाई। सत्र न्यायालय ने उसकी याचिका खारिज कर दी।
त्रिपुरा हाईकोर्ट के समक्ष अपनी पुनरीक्षण याचिका में, उसने प्रस्तुत किया कि, घटना होने के बाद, मामले के पक्षकारों ने मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया क्योंकि वे पड़ोसी है और वे सौहार्दपूर्ण संबंध में रहना चाहते हैं।
उन्होंने गुलाब दास और अन्य बनाम म प्र राज्य AIR 2012 SCC 888 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया था कि अभियुक्तों को धारा 307 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया गया था और सजा सुनाई गई थी जो एक गैर समझौता योग्य अपराध है।
लेकिन पक्षों के बीच हुए समझौते और उस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्तों को दी गई सजा को उनके द्वारा पहले से ही काटी गई सजा के रूप में कम कर दिया।
हाईकोर्ट ने कहा था,
"इस मामले में, पीड़िता एक नाबालिग बच्ची है, जिसे 55 वर्षीय आरोपी ने अपनी यौन वासना को संतुष्ट करने के लिए केक के साथ बहकाया था। दोनों मामलों के तथ्य और परिस्थितियां पूरी तरह से अलग हैं। आरोपी सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है।"
केस : बिमल चंद्र घोष बनाम त्रिपुरा राज्य
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (SC) 157
बेंच: जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओक
केस नंबर | दिनांक: एसएलपी (डायरी) 2339/2022 | 11 फरवरी 2022
वकील: वकील भुवनेश्वरी पाठक, एओआर राहुल कौशिक
केस लॉ: भारतीय दंड संहिता, 1860 - धारा 354 - अभियुक्त को आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी ठहराया गया था- सत्र न्यायालय/ हाईकोर्ट ने उसकी अपील/पुनरीक्षण खारिज कर दी –सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आरोपी ने प्रस्तुत किया कि उसके और शिकायतकर्ता/पीड़िता के बीच एक समझौता किया गया है – एसएलपी खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा: इस तरह के समझौते पर भरोसा देने का कोई कारण नहीं है जो हाईकोर्ट द्वारा दोषसिद्धि की पुष्टि के बाद दर्ज किया जा रहा है।
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