बॉम्बे हाईकोर्ट ने अर्नब गोस्वामी के खिलाफ दर्ज FIR पर रोक लगाई कहा, 'प्रथम दृष्टया कोई केस नहीं बनता'

Update: 2020-06-30 08:28 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को राह्त देते हुए उनके खिलाफ पालघर लिंचिंग मुद्दे पर कथित साम्प्रदायिकता फैलाने के आरोप में और मुंबई के बांद्रा रेलवे में प्रवासी कामगारों के जमा होने को लेकर मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज दो एफआईआर पर रोक लगा दी।

न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति रियाज चागला की खंडपीठ ने कहा कि "उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मुकदमा नहीं बनता।"

पीठ ने आदेश दिया कि अर्नब के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। पीठ ने 12 जून को याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रखा था।

गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और मिलिंद साठे ने प्रस्तुत किया था कि एफआईआर राजनीति से प्रेरित थी और महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने के परिणाम स्वरूप दर्ज की गई थी।

महाराष्ट्र राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत प्रेस की स्वतंत्रता में सांप्रदायिक प्रचार करने का अधिकार शामिल नहीं है।

अर्णब गोस्वामी पर आईपीसी की धारा 153, 153 ए, 153 बी, 295 ए, 298, 500, 504, 505 (2), 506, 120 बी और 117 के तहत मामला दर्ज किया गया। साल्वे ने धारा 153 बी के माध्यम से प्रतिवाद किया और प्रस्तुत किया कि उपरोक्त धारा के तहत कोई अपराध नहीं किया गया है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी द्वारा कथित सांप्रदायिक टिप्पणी के लिए मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को ट्रांसफर करने की याचिका को खारिज कर दिया था।

अदालत ने FIR को रद्द करने की उनकी प्रार्थना को भी खारिज करते हुए कहा था,

"अनुच्छेद 32 के तहत FIR पर कोई सुनवाई नहीं हो सकती। याचिकाकर्ता के पास सक्षम अदालत के समक्ष उपाय अपनाने की स्वतंत्रता है।" पीठ ने हालांकि 24 अप्रैल को पारित पहले के अंतरिम आदेश की पुष्टि की है, जिसमें कई FIR को एक साथ कर मुंबई में ट्रांसफर किया गया था।"

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने एफआईआर पर फैसला सुनाने तक के लिए कठोर कार्रवाई से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी। 

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