अयोध्या मामला : विरोध के बाद मुस्लिम पक्षों ने "मोल्डिंग ऑफ रिलीफ" की प्रति हिंदू पक्षकारों को सौंपी, सुप्रीम कोर्ट को बताया
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि क्या ये वही है जो आज अखबार में छपा है? हालांकि पीठ को इसका जवाब नहीं दिया गया।
अयोध्या में रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की पीठ को बताया कि उन्होंने मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर दाखिल सील कवर लिखित दलीलों को अन्य पक्षकारों को दे दिया है, इसलिए इसे रिकॉर्ड पर लिया जाए।
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि क्या ये वही है जो आज अखबार में छपा है? हालांकि पीठ को इसका जवाब नहीं दिया गया।
मुस्लिम पक्ष का मोल्डिंग ऑफ रिलीफ़ पर बयान
दरअसल हिन्दू पक्षकारों के विरोध के बाद अब मुस्लिम पक्ष ने दाख़िल किए गए मोल्डिंग ऑफ रिलीफ़ पर बयान जारी कर कहा है कि अदालत का जो भी फैसला होगा वो देश के भविष्य और आने वाली पीढ़ियों की सोच पर असर डालेगा। फैसला देश की आज़ादी और गणराज्य के बाद संवैधानिक मूल्यों में यकीन रखने वाले करोड़ों नागरिकों पर भी प्रभाव डालेगा। अब चूंकि फैसले की घड़ी आ पहुंची है तो कोर्ट फैसला देते समय सभी पक्षों की दलील, सबूत और दस्तावेज़ों के साथ इन प्रभावों का भी ध्यान रखे।
हिंदू पक्षकारों ने सीलबंद कवर में नोट का किया था विरोध
16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने अयोध्या भूमि विवाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था और सभी पक्षों को 3 दिनों के भीतर "मोल्डिंग ऑफ रिलीफ" के लिए लिखित जवाब दाखिल करने को कहा था।
दो दिन पहले हिंदू पक्षकारों ने व्यक्तिगत रूप से अपने नोट प्रस्तुत किए कि यदि टाइटल/ स्वामित्व की प्राथमिक राहत उन्हें प्रदान नहीं की गई तो वो किस वैकल्पिक राहत की मांग करते हैं जबकि सभी मुस्लिम दलों ने संयुक्त रूप से एक सीलबंद कवर में अपना नोट जमा किया था। हिंदू पक्षकारों ने मुस्लिम पक्षों द्वारा सीलबंद कवर में नोट जमा करने पर आपत्ति जताई थी। हिंदू पक्षकारों का कहना था कि इस तरह एक पक्ष को अंधेरे में नहीं रखा जा सकता।
"ऐसी भूमि पर निर्माण करने के लिए कौन हकदार होगा और उत्तरदायी होगा"
अखिल भारत हिंदू महासभा ने अपने लिखित सबमिशन में संपत्ति के संचालन और प्रशासन के लिए डिक्री जारी करने की आवश्यकता के लिए जोर डाला है और एक निकाय की स्थापना की मांग की है। महासभा ने न्यायालय से एक ट्रस्ट स्थापित करने के लिए कहा है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि "ऐसी भूमि पर निर्माण करने के लिए कौन हकदार होगा और उत्तरदायी होगा।"
यह भी कहा गया है कि न्यायालय के पास एक सार्वजनिक ट्रस्ट स्थापित करने की शक्तियां हैं और वह "ट्रस्ट संपत्ति के प्रबंधन के लिए योजना का शिलान्यास कर सकता है।" न्यायालय किसी भी प्राधिकरण या उपयुक्त सरकार को यह भी निर्देश दे सकता है कि वह ऐसे ट्रस्ट का गठन करे जो संपत्ति के प्रशासन और प्रबंधन में सक्षम हो।संबंधित पार्टी आय और उसमें होने वाले खर्चों का उचित प्रबंधन कर सकती है।
अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरूद्धार समिति ने भी अपने वकीलों के माध्यम से अपनी लिखित दलीलें दायर की हैं जहां यह अनुरोध किया गया है कि सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के हित में, और "पक्षकारों के बीच पूर्ण न्याय करने के उद्देश्य से मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट के आधार पर अदालत से राम लला और जन्मभूमि के पक्ष में डिक्री पारित करने का आग्रह किया गया है।
इसके अतिरिक्त, महासभा के साथ सहमति जताते हुए, पुनरूद्धार समिति ने न्यायालय से परिसर के प्रशासन और प्रबंधन और मंदिर के लिए एक योजना का निपटान करने के लिए भी कहा है। यह निवेदन किया गया है कि एक ट्रस्ट का गठन किया जाए, जिसमें हिंदू पक्षकारों को शामिल किया जाए, जिन्होंने इस मामले को हिंदुओं के प्रतिनिधियों के रूप में लड़ा है। कहा गया है कि केंद्र सरकार कोनिर्देश दिया जाए कि विवादित भूमि को ट्रस्ट को दिया जाए।
निर्मोही अखाड़े ने मोल्डिंग ऑफ रिलीफ़ में कहा,
निर्मोही अखाड़े ने भी मोल्डिंग ऑफ रिलीफ़ पर दाखिल लिखित नोट में कहा है कि रामलला या किसी भी हिन्दू पक्षकार के पक्ष में डिक्री होने पर उनका सेवायत अधिकार बरकरार रखा जाना चाहिए। विवादित भूमि पर मन्दिर बनाने के साथ ही रामलला की पूजा और व्यवस्था की जिम्मेदारी का अधिकार अखाड़ा का हो। वहीं राम लला विराजमान की ओर से भी लिखित जवाब दाखिल किया गया है। राम लला ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सारा क्षेत्र राम मंदिर के लिए उसे दिया जाए। निर्मोही अखाड़ा या मुस्लिम पार्टियों को जमीन का कोई हिस्सा नहीं मिलना चाहिए।