निगम के वाहन में यात्रा करते हुए मारे जाने वाले व्यक्ति के आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मांगने से रोकने का प्रावधान सही : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2019-10-12 09:20 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान राज्य परिवहन निगम के अनुकंपा नियुक्ति विनियमन को सही ठहराया है जिसके तहत निगम के वाहन में यात्रा करते हुए मारे जाने वाले व्यक्ति के आश्रित को निगम में अनुकंपा के आधार पर नौकरी मांगने से रोकने का प्रावधान है।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, "यद्यपि अनुच्छेद 14 वर्गीय क़ानून की इजाज़त नहीं देता लेकिन यह क़ानून बनाने के लिए तर्कसंगत वर्गीकरण से मना नहीं करता।"

राजस्थान राज्य परिवहन निगम अनुकंपा नियुक्ति विनियमन, 2010 के विनियमन 4(3) में यह प्रावधान है कि अगर निगम के किसी कर्मचारी की मौत निगम के किसी वाहन में यात्रा करते हुए होती है तो अनुकंपा नियुक्ति और अधिनियम के तहत मुआवज़ा दोनों ही दावे निगम के ख़िलाफ़ नहीं किए जा सकते।

राजस्थान हाईकोर्ट ने इस नियमन को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया है कि निगम के किसी कर्मचारी जिसकी मौत निगम के किसी वाहन में यात्रा करने के दौरान हो गई है, उसको उस कर्मचारी से अलग दर्जा नहीं दिया जा सकता जिसकी मौत उस वाहन में यात्रा के दौरान हुई है जो निगम का नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि किसी मृत कर्मचारी का आश्रित जो इस अधिनियम के तहत मुआवज़े और अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का दावा करता है, दोनों ही एक अलग वर्ग में आते हैं।

पीठ ने कहा,

"निगम ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति और मुआवज़े के दावे के संदर्भ में मृत कर्मचारियों के आश्रितों की दो श्रेणिया बनाई हैं। निगम पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़े इसलिए इस तरह की नियुक्ति और दावे को अयोग्य क़रार दिया गया है। उस स्थिति में अपीलकर्ता-निगम को अधिनियम के तहत अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति भी देनी होगी और मुआवज़ा भी देना होगा। उस मामले में जिसमें अपीलकर्ता-निगम का वाहन दुर्घटना में शामिल नहीं होता है, निगम मुआवज़ा नहीं दे सकता। यह नहीं कहा जा सकता कि निगम के वाहन में मरने वाला व्यक्ति और ऐसी दुर्घटना में मरने वाला निगम का कर्मचारी जिसमें निगम का वाहन शामिल नहीं है, दोनों का दर्जा एक ही है।"

तर्कसंगत वर्गीकरण के सिद्धांत को दोहराते हुए पीठ ने कहा,

"यह पूर्णतया स्थापित है कि अनुच्छेद 14 वर्ग के आधार पर वर्गीकरण की इजाज़त नहीं देता, लेकिन वह क़ानून बनाने के लिए इससे नहीं रोकता है। अगर किसी नियम या वैधानिक प्रावधान की इस आधार पर आलोचना होती है कि यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है तो अगर दोनों ही जांच पर यह खड़ा उतरता है तो उसको सही ठहराया जा सकता है। इसकी पहली जांच यह है कि जिस आधार पर इसका वर्गीकरण हुआ है तो वह अंतर बोधगम्य होना चाहिए जो एक समूह के व्यक्तियों और वस्तुओं को दूसरे से अलग करता है, दूसरा, जिस अंतर पर सवाल उठाया जा रहा है उसका उससे संगत संबंध अवश्य होना चाहिए जिसको हम उस नियम या वैधानिक प्रावधान से हासिल करना चाहते हैं।"

पीठ ने कहा कि नियमन 4(3) का प्रयोग निगम की देयता को समाप्त करने के लिए और उसी व्यक्ति को मुआवज़ा देने और अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने के लिए किया जा रहा है।

पीठ ने इस अपील को स्वीकार करते हुए कहा,

"निगम के वाहन में यात्रा करने के दौरान मारे जाने वाले निगम कर्मचारी के आश्रितों और ऐसी दुर्घटना जिसमें निगम का कर्मचारी मारा जाता है लेकिन निगम का वाहन इसमें शामिल नहीं है तो ये आश्रितों की दो श्रेणियाँ हैं और ये दोनों ही बराबर नहीं हैं। इन दोनों के साथ एक ही तरह से व्यवहार नहीं हो सकता, इसलिए नियमन 4(3) के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि यह विभेदकारी है।" 

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