वाडिया ट्रस्ट को धर्मार्थ गतिविधियों के लिए धन जुटाने के लिए भूमि विकसित करने का अधिकार: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2024-10-16 10:20 GMT

सार्वजनिक ट्रस्ट द्वारा मांगी गई राय के संबंध में बॉम्बे हाईकोर्ट ने देखा है कि ट्रस्ट को अपनी धर्मार्थ गतिविधियों के लिए राजस्व जुटाने के लिए स्लम पुनर्वास योजना को क्रियान्वित करने के लिए अकेले या संयुक्त उद्यम के माध्यम से अपनी भूमि पर विकास गतिविधियां करने का अधिकार है।

मामले की पृष्ठभूमि

जस्टिस अभय आहूजा की एकल न्यायाधीश पीठ ए.एच. वाडिया ट्रस्ट (वादी नंबर 1) के ट्रस्टियों (वादी नंबर 2 से 5) द्वारा दायर किए गए मूल समन पर विचार कर रही थी।

मूल समन के माध्यम से वादीगण ने न्यायालय से इस बारे में राय मांगी कि क्या ट्रस्टी स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी (SRA) द्वारा जारी नोटिस के अनुसार अपनी भूमि पर कोई विकास गतिविधि करने के लिए अधिकृत हैं। इसके अलावा क्या ट्रस्ट ऐसी गतिविधियों को करने के लिए किसी भागीदार/संयुक्त उद्यम के साथ सहयोग कर सकता है। SRA ने ट्रस्ट को नोटिस जारी कर ट्रस्ट की भूमि पर स्लम रिहैबिलिटेशन योजना प्रस्तुत करने की मांग की जिसके विफल होने पर एसआरए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करेगा।

वादीगण ने कहा कि ट्रस्ट को अपनी धर्मार्थ गतिविधियों के लिए राजस्व उत्पन्न करने के लिए बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है। यह राजस्व एक निश्चित सीमा तक अपनी भूमि की बिक्री से उत्पन्न धन पर निर्भर करता है। वादीगण ने कहा कि ट्रस्ट अपनी ऐसी जमीनें बेचता है, जो या तो कोई मूल्य नहीं पैदा कर रही हैं या पूरी तरह से अतिक्रमण की शिकार हैं, क्योंकि बेदखली की प्रक्रिया में भारी खर्च की आवश्यकता होगी।

उन्होंने आगे कहा कि ट्रस्ट के पास इन जमीनों की विकास क्षमता का दोहन करने में विशेषज्ञता की कमी है। इसलिए वह आम तौर पर ऐसी जमीनों को बेचने का विकल्प चुनता है।

वादीगण ने न्यायालय की राय मांगी, क्योंकि ट्रस्ट की स्थापना करने वाली वसीयत और वसीयतनामे में ट्रस्ट को विकास गतिविधियों को करने की अनुमति देने वाला कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।

धर्मार्थ गतिविधियों के लिए धन जुटाने के लिए विकास गतिविधियों की आवश्यकता

न्यायालय ने नोट किया कि वसीयत और वसीयतनामे वादी-ट्रस्ट के प्रावधानों से संकेत मिलता है कि ट्रस्टियों को ट्रस्ट की संपत्ति बेचने का पूर्ण विवेकाधीन अधिकार दिया गया है। इसने कहा कि इस तरह का विवेकाधिकार सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम की धारा 36 के प्रावधानों के अधीन होगा जो यह प्रावधान करता है कि सार्वजनिक ट्रस्ट की अचल संपत्ति की कोई भी बिक्री चैरिटी आयुक्त की मंजूरी के बिना वैध नहीं होगी।

कोर्ट ने कहा,

"मेरे विचार में बेचने की शक्ति बहुत व्यापक शक्ति है, जिसमें सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम और लागू कानून और मलिन बस्ती अधिनियम सहित विनियमों के प्रावधानों के अधीन अकेले या संयुक्त रूप से विकसित करने की शक्ति शामिल होगी। इसके अलावा, उक्त ट्रस्ट अधिनियम की धारा 36ए(2) के तहत, ट्रस्टियों को ट्रस्ट के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कार्य करने की सभी शक्तियां प्रदान की जाती हैं।"

न्यायालय ने कहा कि ट्रस्ट बनाने वाली वसीयत 1882 में लिखी गई। टिप्पणी की कि उस समय झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों द्वारा भूमि पर अतिक्रमण की समस्या मौजूद नहीं थी। कम से कम उस हद तक नहीं जितनी कि आज मौजूद है और न ही भूमि के विकास की अवधारणा इतनी प्रचलित थी, जिस तरह से इसे अब समझा जाता है।

न्यायालय ने कहा कि वसीयतकर्ता ने उस समय भूमि की विकास क्षमता की सराहना नहीं की होगी। वसीयतकर्ता ने उन आवश्यकताओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया होगा, जो ट्रस्ट को अपने खर्चों को पूरा करने के लिए शक्ति प्रदान करना आवश्यक बनाती हैं।

न्यायालय ने पाया कि ट्रस्ट अपनी आय का बड़ा हिस्सा व्यक्तियों और संस्थाओं को मेडिकल और शैक्षिक सहायता तथा वित्तीय सहायता प्रदान करने में खर्च करता है। इस प्रकार, ट्रस्ट को अपनी धर्मार्थ गतिविधियों के लिए धन जुटाना जारी रखना होगा और उक्त भूमि से राजस्व प्राप्त होगा।

इसने पाया कि भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए काफी खर्च की आवश्यकता होगी। इसके अलावा यदि SRA भूमि का अधिग्रहण करता है तो मुआवजा बहुत कम होगा, जिससे ट्रस्ट धर्मार्थ उद्देश्यों के लाभ से वंचित हो जाएगा।

न्यायालय का विचार था कि अपने धर्मार्थ उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ट्रस्ट के लिए भूमि का विकास करना आवश्यक हो सकता है। चाहे अकेले या संयुक्त रूप से, क्योंकि इसमें विकास गतिविधियों में विशेषज्ञता का अभाव है।

इस प्रकार न्यायालय ने माना कि ट्रस्टियों के पास अपनी भूमि को बेचने और उस पर विकास गतिविधियों को करने का अधिकार है, चाहे अकेले या संयुक्त रूप से।

केस टाइटल: ए.एच. वाडिया ट्रस्ट और अन्य बनाम चैरिटी कमिश्नर (2022 का मूल समन संख्या 1)

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