आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने YSRCP द्वारा दायर रिट याचिकाओं के बैच का निपटारा किया, जिसमें 10 जिलों के पार्टी ऑफिस को जारी किए गए विध्वंस नोटिस को चुनौती दी गई। इसमें निर्देश दिया गया कि पार्टी की चिंताओं को सुने बिना किसी भी विध्वंस आदेश की पुष्टि नहीं की जानी चाहिए।
जस्टिस बी. कृष्ण मोहन ने यह भी कहा कि विध्वंस केवल तभी किया जा सकता है, जब संबंधित भवन संरचना जन सुरक्षा को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रही हो।
पार्टी ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि राज्य में शासन परिवर्तन के बाद उसके ऑफिस को निशाना बनाया जा रहा है।
चुनौती के तहत नोटिस 24 जून को जारी किए गए और याचिकाओं का बैच 26 जून को दायर किया गया।
यह तर्क दिया गया कि नोटिस किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी नहीं किए गए। यह भी तर्क दिया गया कि ध्वस्तीकरण के आदेश अंतिम विकल्प के रूप में पारित किए जाने चाहिए न कि सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर।
हाईकोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता-पक्ष को स्पष्टीकरण का अवसर दिए बिना तथा जवाब दाखिल करने के लिए पर्याप्त समय दिए बिना कोई बलपूर्वक कार्रवाई न करे। इसने यह भी आदेश दिया कि ध्वस्तीकरण के आदेश को आगे बढ़ाने का एकमात्र मानदंड सार्वजनिक सुरक्षा है।
इससे पहले खंडपीठ ने सरकारी अधिकारियों को केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करते हुए कार्यवाही करने का निर्देश देकर रिटों का निपटारा करने की मांग की। हालांकि याचिकाकर्ताओं ने खंडपीठ के संज्ञान में यह लाकर इसका कड़ा विरोध किया कि इसी तरह के मामले में जब न्यायालय द्वारा इसी तरह के निर्देश पारित किए गए तो राज्य ने आदेशों का पालन करने का वचन दिया। इसके बावजूद अगले ही दिन निर्माण को ध्वस्त कर दिया।
दूसरी ओर राज्य ने तर्क दिया कि ध्वस्तीकरण नोटिस जारी करना अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि प्रक्रिया का पालन किया जा रहा था।
दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद खंडपीठ ने पिछले शुक्रवार को मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
केस टाइटल- YSRCP बनाम AP राज्य