दो दशक पुराना अपराध : सुप्रीम कोर्ट ने कहा,अभियुक्त की सजा में सिर्फ इसलिए हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता कि अपराध करने के समय वह नाबालिग था [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-04-07 14:30 GMT

दो अभियुक्तों की सजा को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो दशक से पुराने मामाले में जो सजा सुनाई गई है उसमें सिर्फ इसलिए हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है कि जिस समय यह अपराध हुआ उस समय अपराधी नाबालिग था। याचिका जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी यह राय दी, दो अभियुक्तों ने दायर की थी।

यह एक दो दशक पुराना मामला है और नियमित आपराधिक अदालत ने अभियुक्तों को कई धाराओं के तहत दोषी मानते हुए तीन साल की सश्रम कारावास की सजा दी थी। हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के इस फैसले को सही ठहराया था।

बाद में आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और पहली बार इस आधार पर छूट की याचना की कि जिस समय उसने यह अपराध किया उस समय वह नाबालिग था।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर बनुमती की पीठ ने जीतेन्द्र सिंह उर्फ बब्बू सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए कहा : ...इस कोर्ट ने पाया है कि यह नाबालिग कथित अपराध करने का दोषी है पर उसको कोई सजा नहीं मिली है क्योंकि इस अदालत ने उसको मिली सजा को ख़ारिज कर दिया। दूसरे मामले में इस कोर्ट का मत है कि जेल में कुछ समय बिताकर नाबालिग को अपने अपराध की पर्याप्त सजा मिल चुकी है। तीसरे मामले में कोर्ट ने पूरे मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को दुबारा सुनवाई के लिए सौंप दिया। चौथे मामले में अदालत ने मामले के आधार पर उसकी जांच की और नाबालिग को दोषी पाने पर इस मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को सजा के निर्णय के लिए भेज दिया।

पीठ ने कहा, “न्यायिक तरीका हमेशा ही वास्तविकता पर आधारित होना चाहिए और जमीनी हकीकत से इसका संबंध होना चाहिए। इसलिए हम इस अदालत द्वारा पूर्व में चार मामलों में अपनाए गए तरीकों पर भरोसा करेंगे और इस तरह दोषी करार दिए जाने की प्रक्रिया की पड़ताल करेंगे।”

पीठ ने अपने फैसले में कहा : इतना समय बीत जाने के बाद हमें लगता है कि अब इस मामले को सजा को लेकर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को भेजना जरूरी नहीं होगा। इसका कारण यह है कि अगर जेजे बोर्ड को यह लगता है कि अभियुक्तों ने अब तक जितनी सजा भोगी है उससे ज्यादा सजा उसको दी जानी चाहिए तो उस स्थिति में वह उसको नाबालिगों के लिए बने किसी आश्रय स्थल में भेजेगा जबकि यह व्यक्ति अब नाबालिग नहीं रहा और इसलिए अब वहाँ नहीं रह सकता।

इस व्यक्ति की सजा की पुष्टि करते हुए कोर्ट ने कहा कि उसकी सजा को संशोधित कर उतनी अवधि की कर दी जाए जितनी अवधि वह जेल में बिता चुका है।


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