सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में भीड़भाड़ कम करने, जजों की नियुक्ति और उनके मूल्यांकन के लिए एक नई न्यायिक निकाय बनाने पर केंद्र विचार करे : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने पिछले दिनों अथॉरिटीज को निर्देश दिया कि वे संवैधानिक अदालतों के अलावा अन्य अदालतों में नियुक्तियों के लिए एक केंद्रीय निकाय की स्थापना के बारे में सोचे और यह भी सोचे कि संवैधानिक अदालतों में नियुक्तियों की जो वर्तमान व्यवस्था है उसमें सभी स्तरों पर जो खामियां हैं उसको कैसे दूर किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति एके गोएल और यूयू ललित की पीठ ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को छेड़े बिना विशेषज्ञों की एक पूर्णकालिक निकाय हो जो नियुक्ति के लिए उपयुक्त व्यक्ति की पहचान, उसकी जांच और उसके मूल्यांकन का कार्य करे और फिर उनकी नियुक्ति के बाद उनके प्रदर्शनों का आकलन करे।
पीठ ने यह भी कहा कि सरकार यह बताये कि उनके स्तर पर उम्मीदवारों के आकलन की प्रक्रिया में किस तरह के बदलाव की जरूरत है ताकि कोई गलत नियुक्ति न होने पाए।
पीठ एक ऐसी अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें हाई कोर्ट के उस आदेश को मुख्यतः इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि अपीलकर्ता दस वर्षों से अधिक समय से जेल में है और अगर अपनी सजा की पूरी अवधि के दौरान उसे जेल में ही रहना है तो अपील का कोई मतलब नहीं है।
लेकिन पीठ ने इस बात की पड़ताल करने का निर्णय किया है कि सुनवाई में देरी से कैसे निपटा जाए। पीठ ने इस मामले में वरिष्ठ एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम को कोर्ट की मदद के लिए अमिकस क्यूरी नियुक्त किया है।
अमिकस क्यूरी ने कहा कि हाई कोर्ट में जो पद खाली हैं उन पर जजों के पद छोड़ने से पहले ही नियुक्तियां हो जानी चाहिए। लंबित अपीलों से निपटने के लिए तदर्थ जजों की नियुक्ति की जाए।
जहाँ भी ज्यादा मामले लंबित हैं, उन मामलों को अन्य राज्यों के समवर्ती न्यायक्षेत्र वाली अदालतों को ट्रांसफर कर दिया जाए। मामलों को जल्द निपटाने के लिए हर क्षेत्र में तकनीकों की मदद ली जाए। स्थगन से बचा जाए और अपीलों पर सुनवाई के लिए समय सारणी तय किए जाएं और उनका कड़ाई से पालन हो।
एजी केके वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार ने अदालतों में लंबित मामलों को कम करने में न्यायपालिका की मदद के लिए कई कदम उठाए हैं जिनमें कम्प्यूटरीकरण, जजों की संख्या में वृद्धि, नीतिगत और कानूनी मदद जैसी बातें शामिल हैं। 500 अदालतों और जेलों में वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग की सुविधा शुरू कर दी गई है। न्यायपालिका में जरूरी सुविधाओं के लिए 5956 करोड़ रुपए दिए गए हैं। 14वें वित्त आयोग ने न्यायिक व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए 1800 फ़ास्ट ट्रैक अदालत गठित किए गए हैं जो कि पांच साल के लिए हैं जिस पर 4144 करोड़ रुपए खर्च आएँगे।