“बेंच बदलने पर कोई राहत का हकदार नहीं जिसे पहली बेंच ठुकरा चुकी हो”:SC ने ओडिसा में अवैध खनन के लिए जुर्माने की डेडलाइन 31 दिसंबर से बढाने से इंकार किया

Update: 2017-12-29 14:41 GMT

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरूण  मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की वेकेशन बेंच ने शुक्रवार को ओडिशा में लोहे और मैंगनीज अयस्कों के खनन के लिए पट्टाधारकों के उस अनुरोध को ठुकरा दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट के दो अगस्त के आदेश के तहत पर्यावरण स्वीकृति  (EC) और वन स्वीकृति  ( FC) के बिना राज्य में खनन कार्यों को चलाने के लिए  31 दिसंबर की तय समय सीमा को बढाने की मांग की गई थी।

NGO कॉमन कॉज द्वारा दाखिल जनहित याचिका  [डब्लूपी ( सी) 114/2014] पर जस्टिस  मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने 2 अगस्त को ये फैसला सुनाया था कि 1994 के पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) या 2006 के EIA के उल्लंघन में किए गए किसी भी खनन को अवैध माना जाएगा। कोर्ट द्वारा 19 57 के खानों और खनिजों (विकास और विनियमन) अधिनियम की धारा 21 (5) और 2000-01 से निकाले गए खनिजों की कीमत के 100% मुआवजे के भुगतान का निर्देश दिया गया था। इसके अलावा एफसी के बिना 7 जनवरी 1 99 8 के बाद किसी भी खनन गतिविधि के लिए उसी आधार  पर दंड के रूप में जुर्माना लगाया गया था। दंड राशि को 31 दिसंबर तक जमा करने का आदेश दिया गया था। इसके बाद 13 दिसंबर की बेंच ने वक्त बढाने की अर्जी को भी खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा, "हम इसे पूरी तरह से स्पष्ट करते हैं कि खनन पट्टे धारकों को 2 अगस्त के फैसले के आधार पर 31 दिसंबर से पहले

मुआवजे और / या अन्य देय राशि / दंड का भुगतान करना चाहिए। अगर 31 दिसंबर को या इससे पहले भुगतान नहीं की किया जाता है तो ओडिशा राज्य उस पट्टा धारक के खनन कार्यों को बंद करेगा। " पीठ ने 2 अगस्त के अपने फैसले में कहा था कि अप्रैल, 2014 की केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000-01 से पर्यावरण के मंजूरी के बिना या पर्यावरण मंजूरी के अतिरिक्त उत्पादित खनिजों का कुल काल्पनिक मूल्य वन्य निकासी के बिना खनन को छोड़कर कुल 17,576.16 करोड़ रुपये आता है।

शुक्रवार को खनन पट्टा धारकों में से एक के  लिए पेश वकील ने कोर्ट में कहा कि EC  के संबंध में ओडिशा राज्य द्वारा मांग नोटिस सितंबर में दिया गया और 1,100 करोड़ रुपये का जुर्माना  पहले ही  जमा हो चुका है।  जहां तक ​​FC  का संबंध है, दिसंबर में ही डिमांड नोटिस जारी किया गया और इसलिए 1800 करोड़ रुपये के भुगतान के लिए जनवरी, 2018 तक का समय दिया जाना चाहिए।

लेकिन बेंच ने इससे इंकार करते हुए कहा कि बेंच बदलने पर कोई उस राहत का हकदार नहीं हो सकता जिसे पहले बेंच ठुकरा चुकी हो।

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