मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम कर्मचारी का मामला: दुराचार के आरोप लंबित होने पर भी विभाग VRS आवेदन निपटाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
13 Nov 2025 1:41 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी कर्मचारी की मेडिकल स्थिति ऐसी हो कि वह विभागीय जांच का सामना करने में असमर्थ हो तो लंबित दुराचार के आरोपों के बावजूद उसके स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) के आवेदन पर विचार किया जाना चाहिए।
जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस सिद्धार्थ नंदन की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि जब कोई कर्मचारी चिकित्सकीय रूप से जांच में भाग लेने योग्य न हो तो विभागीय कार्रवाई का औचित्य समाप्त हो जाता है।
मामले की पृष्ठभूमि
मामला दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड अलीगढ़ के तकनीशियन ग्रेड-द्वितीय कर्मचारी से संबंधित है जिन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। अप्रैल, 2022 में उनके विरुद्ध बड़ी वसूली का आदेश भी पारित किया गया था। कर्मचारी ने अपील दायर की जो खारिज कर दी गई। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
न्यायालय ने बर्खास्तगी का आदेश रद्द करते हुए पाया कि कर्मचारी की मानसिक स्थिति असामान्य है। साथ ही यह निर्देश दिया कि विभाग केवल तभी पुनः अनुशासनिक कार्यवाही शुरू करे जब मेडिकल बोर्ड यह प्रमाणित करे कि कर्मचारी मानसिक रूप से जांच का सामना करने योग्य है।
इसके बाद गठित मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि कर्मचारी को कई ब्रेन स्ट्रोक के कारण गंभीर शारीरिक और संज्ञानात्मक अक्षमता है। वह न तो संवाद कर सकते हैं और न ही कार्यवाही को समझ सकते हैं। इस स्थिति में उनकी पत्नी ने जुलाई 2024 में मेडिकल आधार पर VRS के लिए आवेदन किया।
विभाग और अदालत की कार्यवाही
विभाग द्वारा VRS आवेदन पर कोई कार्रवाई न किए जाने पर कर्मचारी की ओर से दोबारा याचिका दायर की गई। एकल पीठ ने आदेश दिया कि विभाग लंबित दुराचार आरोपों की परवाह किए बिना VRS आवेदन पर निर्णय करे, क्योंकि कर्मचारी की स्थिति निष्पक्ष जांच की अनुमति नहीं देती।
विभाग ने इस आदेश को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील दायर की। विभाग का कहना था कि मेडिकल रिपोर्ट की प्रामाणिकता संदिग्ध है।
इस पर न्यायालय ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIMS) नई दिल्ली से कर्मचारी की नई मेडिकल जांच कराने का निर्देश दिया।
एम्स की रिपोर्ट में यह स्पष्ट पाया गया कि कर्मचारी को कई बार ब्रेन स्ट्रोक हुआ था, जिससे उन्हें स्थायी रूप से शारीरिक और मानसिक अक्षमता हो गई। वह न तो आरोप समझ सकते हैं और न ही किसी विभागीय जांच में भाग लेने की स्थिति में हैं।
अदालत के निष्कर्ष
खंडपीठ ने कहा कि पूर्व आदेश में यह स्पष्ट किया गया कि यदि कर्मचारी मेडिकल रूप से जांच का सामना करने योग्य नहीं पाया गया तो कोई विभागीय कार्रवाई नहीं हो सकती। चूंकि अब मेडिकल साक्ष्य निर्विवाद रूप से यह साबित करते हैं कि जांच संभव नहीं है। इसलिए विभाग को कर्मचारी का वीआरएस आवेदन लंबित आरोपों से प्रभावित हुए बिना चार सप्ताह के भीतर निपटाना होगा।
अदालत ने एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए विभाग की अंतर-न्यायिक अपील खारिज कर दी।

