इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुंडा एक्ट के नोटिस में सामान्य प्रकृति के भौतिक आरोपों का उल्लेख न होने पर जताई नाराज़गी, यूपी सरकार से मांगा हलफनामा
Amir Ahmad
23 July 2025 1:00 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम 1970 की धारा 3 के तहत जारी एक कारण बताओ नोटिस पर रोक लगाते हुए कहा कि नोटिस में याचिकाकर्ता के खिलाफ सामान्य प्रकृति के सामग्रीगत आरोपों का उल्लेख नहीं किया गया है जो कि कानून के तहत अनिवार्य है।
जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस मनीष कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश 14 जुलाई को पारित किया, जबकि वह 25 जून 2025 को उन्नाव के जिलाधिकारी द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विवादित विवादित आदेश नोटिस में केवल FIR नंबर और धाराओं का उल्लेख किया गया, जबकि उस पर लगाए गए ठोस आरोपों का विवरण नहीं है, जिससे नोटिस कानूनी रूप से दोषपूर्ण बनता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस विषय पर कानून की स्थिति पहले ही स्पष्ट की जा चुकी है, खासतौर पर रामजी पांडेय बनाम राज्य बनाम यूपी (1981) के फ़ुल बेंच फ़ैसले में, जिसमें कहा गया कि नोटिस में केवल FIR नंबर और धाराएं बताना पर्याप्त नहीं है बल्कि आरोपों की सामग्रीगत जानकारी देना आवश्यक है।
इसी दृष्टिकोण की पुनः पुष्टि भीम सेन त्यागी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1999) की पाँच जजों की पूर्णपीठ द्वारा भी की गई थी।
कोर्ट ने गोवर्धन बनाम राज्य बनाम यूपी (2023 LiveLaw (AB) 278) का हवाला देते हुए कहा कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा मुद्रित फॉर्मेट पर बिना विवेक लगाए ऐसे नोटिस जारी करना जारी है, जबकि कोर्ट ने पूर्व में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि ऐसी प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए।
कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि वह 10 दिनों के भीतर हलफनामा दाखिल करे, जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि गोवर्धन केस में पारित निर्देशों के अनुपालन में क्या कदम उठाए गए।
मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी। तब तक 25.06.2025 के नोटिस की कार्रवाई पर रोक जारी रहेगी।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि जिलाधिकारी चाहें तो वह कानून के अनुसार नया कारण बताओ नोटिस जारी कर सकते हैं।
केस टाइटल: अभय विश्वकर्मा बनाम राज्य उत्तर प्रदेश, गृह विभाग व अन्य

