इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी ट्रांसजेंडर नीति तैयार करने के लिए जनहित याचिका पर UOI यूपी सरकार से जवाब मांगा

Amir Ahmad

9 Sept 2024 4:07 PM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी ट्रांसजेंडर नीति तैयार करने के लिए जनहित याचिका पर UOI यूपी सरकार से जवाब मांगा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश ट्रांसजेंडर नीति तैयार करने की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) पर भारत संघ, यूपी राज्य और केंद्र और राज्य सरकार के तहत विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से जवाब मांगा।

    किन्नर शक्ति फाउंडेशन (अपने अध्यक्ष शुभम गौतम के माध्यम से) द्वारा दायर जनहित याचिका में राज्य में प्रभावी आउटरीच और जागरूकता कार्यक्रम और ट्रांसजेंडर सुरक्षा सेल की स्थापना के साथ ट्रांसजेंडर आयुष्मान टीजी प्लस कार्ड योजना के त्वरित कार्यान्वयन की भी मांग की गई।

    जनहित याचिका में राज्य भर में गरिमा गृह सुविधाओं की स्थापना और संचालन के लिए संसाधनों का उचित आवंटन, राज्य में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापक नीतियां तैयार करने, ट्रांसजेंडर शौचालयों की स्थापना और शिक्षण संस्थानों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को प्रवेश प्रदान करने और विशेष अभियान चलाकर सरकारी क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की भर्ती करने की मांग की गई।

    पिछले सप्ताह जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस विकास बुधवार की पीठ ने प्रतिवादी पक्षों को चार सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की सुनवाई अब 16 अक्टूबर को होगी।

    एडवोकेट रे साहब यादव के माध्यम से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि भारत में ट्रांसजेंडर लोगों के कई सामाजिक-सांस्कृतिक समूह हैं, जैसे कि हिजड़ा/किन्नर, और अन्य ट्रांसजेंडर पहचान जैसे - शिव-शक्ति, जोगता, जोगप्पा, आराधी, सखी, आदि जो सभी मामलों में 'गंभीर भेदभाव और उत्पीड़न' का सामना करते हैं। उन्हें मौखिक दुर्व्यवहार, शारीरिक और यौन हिंसा, झूठी गिरफ्तारी, अपनी पैतृक संपत्ति, सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से वंचित करने जैसे 'अनुचित व्यवहार' का सामना करना पड़ता है और परिवार, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थल, स्वास्थ्य देखभाल सेटिंग्स, सार्वजनिक स्थानों जैसी कई सेटिंग्स में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

    जनहित याचिका में कहा गया,

    "शायद ही कभी हमारा समाज उस आघात, दर्द और पीड़ा को महसूस करता है या महसूस करने की परवाह करता है, जिससे ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य न तो गुजरते हैं और न ही ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों की सहज भावनाओं की सराहना करते हैं। खासकर उन लोगों की, जिनका मन और शरीर उनके जैविक जेंडर को अस्वीकार कर देता है।"

    जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि बहिष्कार का प्राथमिक कारण (और परिणाम) हिजड़ों और अन्य ट्रांसजेंडर लोगों की जेंडर स्थिति की पहचान की कमी (या अस्पष्टता) है और यह एक महत्वपूर्ण बाधा है जो अक्सर उन्हें अपने इच्छित जेंडर में अपने नागरिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोकती है।

    जनहित याचिका में कहा गया,

    "भारत में ट्रांसजेंडर लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह भेदभाव न केवल ट्रांसजेंडर लोगों को रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास जैसी प्रमुख सामाजिक वस्तुओं तक समान पहुंच से वंचित करता है बल्कि यह उन्हें समाज में हाशिए पर डाल देता है। उन्हें उन कमजोर समूहों में से एक बना देता है, जिनके सामाजिक रूप से बहिष्कृत होने का खतरा है।"

    इस पृष्ठभूमि में जनहित याचिका (PIL) में कहा गया कि याचिकाकर्ता संगठन ने स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, शिक्षा, स्वच्छता, भोजन और मनोरंजन सुविधाओं सहित ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को प्रभावित करने वाले जीवन के लगभग सभी पहलुओं में उचित राहत की मांग करते हुए विभिन्न अधिकारियों और उच्च पदस्थ अधिकारियों को कई अभ्यावेदन प्रस्तुत किए हैं।

    PIL याचिका में कहा गया कि इन प्रयासों के बावजूद कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के उद्देश्यों और प्रयोजनों को लागू करने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाए गए हैं।

    इसके मद्देनज जनहित याचिका में आगे कहा गया कि उसने उपरोक्त विभिन्न राहतों की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।

    Next Story