'मुकदमेबाज' वकील को मिली सजा, 5 मामलों में निःशुल्क पेश होने का निर्देश
Amir Ahmad
14 Aug 2025 3:21 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कड़े आदेश में उत्तर प्रदेश जल निगम के असिस्टेंट इंजीनियर के खिलाफ विभागीय जांच की मांग करने वाली वकील द्वारा दायर रिट याचिका खारिज की। न्यायालय ने कहा कि यह याचिका दुर्भावना से प्रेरित थी और न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
जस्टिस अजय भनोट की पीठ ने दंड स्वरूप उन्हें गौतमबुद्ध नगर की निचली अदालत में पांच मामलों में निःशुल्क सहायता करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता न तो जल निगम का कर्मचारी है और न ही अनुशासनात्मक प्राधिकारी इसलिए उसे सरकारी कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है।
न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकारी कर्मचारियों के सेवा नियम सरकारी कर्मचारियों की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। उन्हें किसी बाहरी हस्तक्षेप के भय के बिना कार्य करने में सक्षम बनाते हैं।
अपने आदेश में पीठ ने यह भी चेतावनी दी कि बाहरी लोगों, जो अधिभोगी और घुसपैठिए हैं, उनकी शिकायतों पर विचार करने से सरकार के कामकाज पर दूरगामी परिणाम होंगे और सरकारी कर्मचारियों के 'मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव' पड़ेगा।
पीठ ने कहा कि ऐसे लोगों को रोका जाना चाहिए और सरकारी कर्मचारियों की सुरक्षा की जानी चाहिए।
पीठ ने यह भी कहा कि सेवा मामलों में जनहित याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। साथ ही 'पीड़ित' पक्ष और 'नाराज' पक्ष के बीच अंतर पर भी ज़ोर दिया। पीठ ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि केवल वही व्यक्ति रिट अधिकार क्षेत्र का आह्वान कर सकता है, जिसके अधिकार या हित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा हो या उसे ख़तरा पहुँचा हो।
जस्टिस भनोट ने टिप्पणी की,
"मुकदमेबाज़ी शरारती लोगों का खेल नहीं हो सकती और अदालतें घुसपैठियों का खेल का मैदान नहीं हैं।"
इसके अलावा, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता एक वकील है, अदालत ने याद दिलाया कि बार के सदस्यों की विशेष ज़िम्मेदारी है कि वे कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनें और इस तरह के दुर्भावनापूर्ण मुकदमे शुरू करके वकील के रूप में अपने विशेषाधिकारों का दुरुपयोग न करें।
मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर न्यायालय ने संबंधित वकील पर जुर्माना लगाते हुए उसे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आवंटित पांच मामलों में गौतमबुद्ध नगर की निचली अदालत की नि:शुल्क सहायता करने का निर्देश दिया।
याचिका खारिज करते हुए पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका आदेश प्रतिवादी नंबर 3 के खिलाफ लोकायुक्त सहित अन्य प्राधिकारियों के समक्ष लंबित कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगा, जो हाईकोर्ट के आदेश से प्रभावित हुए बिना कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है।
केस टाइटल- सुल्तान चौधरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 2 अन्य 2025 लाइवलॉ (एबी) 305

