शिक्षकों की अनुपस्थिति से RTE Act का उद्देश्य विफल होता है: हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को 3 माह में समयपालन नीति बनाने का निर्देश
Amir Ahmad
18 Dec 2025 4:18 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि यदि शिक्षक समय पर स्कूल नहीं पहुंचते, तो इससे बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार ( RTE Act) का उद्देश्य ही विफल हो जाता है। इस टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने प्राथमिक विद्यालयों के उन शिक्षकों के निलंबन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिन्हें निरीक्षण के दौरान विद्यालय से अनुपस्थित पाया गया था।
साथ ही अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह तीन माह के भीतर शिक्षकों की समय पर उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस नीति बनाए।
जस्टिस प्रकाश पाडिया की एकल पीठ ने इंद्रा देवी और लीना सिंह चौहान द्वारा दायर याचिकाओं का निस्तारण करते हुए यह आदेश पारित किया। दोनों याचिकाकर्ता सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक हैं और उन्होंने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा पारित अपने निलंबन आदेशों को चुनौती दी थी।
उनके निलंबन का आधार यह था कि निरीक्षण के समय वे अपने-अपने विद्यालयों में उपस्थित नहीं पाई गई थीं।
अदालत ने अपने 22 पृष्ठों के आदेश में शिक्षकों की भूमिका और उनके सामाजिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
जस्टिस पाडिया ने कहा कि शिक्षक ज्ञान के स्तंभ होते हैं और भारतीय संस्कृति में उन्हें 'गुरु' का दर्जा प्राप्त है।
उन्होंने ब्रह्माण्ड पुराण का उल्लेख करते हुए कहा कि गुरु को शिव, विष्णु और ब्रह्मा के समान माना गया और उन्हें मानव रूप में परम शिव कहा गया। महात्मा गांधी के विचारों का हवाला देते हुए अदालत ने यह भी कहा कि चरित्रहीन शिक्षक उस नमक की तरह है, जिसमें स्वाद न हो।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों, जिनमें अविनाश नागरा बनाम नवोदय विद्यालय समिति और परिमल कुमार बनाम झारखंड राज्य जैसे फैसले शामिल हैं, का उल्लेख करते हुए दोहराया कि शिक्षक का प्रमुख दायित्व केवल शिक्षा देना ही नहीं, बल्कि बच्चों में बौद्धिक और नैतिक मूल्यों का संचार करना भी है।
कोर्ट ने कहा कि गुरुकुल प्रणाली से लेकर आधुनिक शिक्षा व्यवस्था तक शिक्षक समाज के नैतिक और बौद्धिक ढांचे को आकार देते आए हैं और उनकी गरिमा में किसी भी तरह की गिरावट के दूरगामी दुष्परिणाम हो सकते हैं।
हालांकि, इन सभी आदर्शों के बावजूद कोर्ट ने व्यावहारिक स्थिति पर गंभीर चिंता जताई। जस्टिस पाडिया ने कहा कि यह एक सर्वविदित तथ्य है कि प्रदेश के अनेक प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक समय पर नहीं पहुंचते और इस संबंध में बड़ी संख्या में मामले प्रतिदिन अदालत के समक्ष आ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यदि शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं आते तो यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के उद्देश्य को विफल कर देता है और बच्चों को संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकार से वंचित करता है।
इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने निलंबन आदेशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और संबंधित अनुशासनिक प्राधिकारी को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लंबित कार्यवाही को दो माह के भीतर शीघ्रता से, कानून के अनुसार, पूरा करे।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि शिक्षकों और कर्मचारियों की डिजिटल उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं।
इसके बाद हाईकोर्ट ने विशेष सचिव, बेसिक शिक्षा, उत्तर प्रदेश को स्पष्ट निर्देश जारी किया कि शिक्षकों की समय पर उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए एक नीति निर्णय लिया जाए और यह निर्णय तीन माह की अवधि के भीतर अनिवार्य रूप से किया जाए।

