UP Police Act | SHO के खिलाफ कार्यवाही में एक ही मजिस्ट्रेट गवाह और जज दोनों नहीं हो सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

5 Feb 2024 7:51 AM GMT

  • UP Police Act | SHO के खिलाफ कार्यवाही में एक ही मजिस्ट्रेट गवाह और जज दोनों नहीं हो सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यूपी पुलिस अधिनियम (UP Police Act) की धारा 29 के तहत SHO (प्रभारी निरीक्षक) के खिलाफ उनके द्वारा शुरू किए गए मामले में एक ही मजिस्ट्रेट गवाह और जज नहीं हो सकता।

    UP Police Act की धारा 29 में उल्लिखित पुलिस अधिकारी द्वारा कर्तव्यों की उपेक्षा के लिए दंड का प्रावधान है, जिसमें कानून के किसी भी प्रावधान या सक्षम प्राधिकारी द्वारा दिए गए वैध आदेश का जानबूझकर उल्लंघन या उपेक्षा शामिल है। ऐसे दोषी पुलिस अधिकारी के लिए दंड तीन महीने तक का वेतन, या कारावास, कठोर श्रम के साथ या उसके बिना, तीन महीने से अधिक की अवधि के लिए, या दोनों हो सकते हैं।

    कोर्ट ने कहा कि यूपी पुलिस रेगुलेशन के रेगुलेशन 484 और 486, UP Police Act की धारा 29 के तहत पूछताछ की प्रक्रिया प्रदान करते हैं। विनियम 484 में प्रावधान है कि ऐसी शिकायतों का निपटारा केवल जिला मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है। यदि जिला मजिस्ट्रेट के अलावा किसी अन्य मजिस्ट्रेट को शिकायत प्राप्त होती है तो इसकी सूचना जिला मजिस्ट्रेट को दी जानी चाहिए।

    न्यायालय ने कहा कि विनियमन 486 में प्रावधान है कि “मामले को ऊपर बताए गए तरीके से विभागीय पुलिस अधीक्षक या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा उठाया जाएगा। यदि मजिस्ट्रेट स्वयं इसका संज्ञान लेता है तो उसमें उल्लिखित धारा 190 आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के मद्देनजर, अधिकारी को नोटिस देने के बाद मामले को जांच करने के लिए किसी अन्य मजिस्ट्रेट के पास भेजना होगा।

    जस्टिस शमीम अहमद ने यूपी पुलिस रेगुलेशन के रेगुलेशन 484 और 486 के साथ धारा 29 पढ़ते हुए मजिस्ट्रेट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आईपीसी की धारा 406 के तहत SHO कोतवाली मनकापुर, गोंडा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया, जिसका उद्देश्य उन्हें UP Police Act की धारा 29 के तहत दंडित करना है।

    हाईकोर्ट का फैसला

    UP Police Act की धारा 29 सपठित यूपी पुलिस रेगुलेशन के रेगुलेशन 484 और 486 पर चर्चा करते हुए कोर्ट ने कहा,

    “इसलिए प्रक्रिया यह स्पष्ट करती है कि एक ही मजिस्ट्रेट गवाह और स्वयं जज नहीं हो सकता। इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया यहां ऊपर उल्लिखित विनियमों के साथ पढ़े गए पुलिस अधिनियम 1861 की धारा 29 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।

    तदनुसार, अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, कोर्ट नंबर 3, गोंडा का आदेश रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल: राज कुमार सरोज बनाम यूपी राज्य के माध्यम से. प्रिं. सचिव. गृह, लखनऊ और अन्य [2024 के अनुच्छेद 227 संख्या - 414 के तहत मामले]

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