विभाजन वाद में पारित प्राथमिक डिक्री अंतरिम आदेश है या पक्षकारों के अधिकारों का अंतिम निर्णय? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजा

Amir Ahmad

21 July 2025 11:53 AM IST

  • विभाजन वाद में पारित प्राथमिक डिक्री अंतरिम आदेश है या पक्षकारों के अधिकारों का अंतिम निर्णय? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के एकलपीठ ने यह महत्वपूर्ण प्रश्न एक बड़ी पीठ के पास भेजा कि क्या किसी विभाजन वाद में पारित प्राथमिक डिक्री (Preliminary Decree) को अंतरिम आदेश माना जाएगा या यह आदेश विवाद में पक्षकारों के हिस्से संबंधी ठोस अधिकारों का अंतिम और निर्णायक निर्णय माना जाएगा। साथ ही यह सवाल भी बड़ी बेंच को सौंपा गया कि क्या इस तरह की डिक्री के विरुद्ध उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 207 के अंतर्गत अपील की जा सकती है?

    विधिक पृष्ठभूमि:

    धारा 116 के अंतर्गत कोई भूमिधर (Co-Sharer) विभाजन (Partition) हेतु वाद दायर कर सकता है।

    धारा 207 किसी वाद आवेदन या कार्यवाही में अंतिम आदेश या डिक्री के विरुद्ध अपील की व्यवस्था करती है।

    धारा 208 द्वितीय अपील की अनुमति देती है।

    धारा 209(f) अंतरिम आदेशों या अंतरिम डिक्री के विरुद्ध अपील पर स्पष्ट रोक लगाती है।

    जस्टिस मनीष कुमार निगम ने Amarjeet बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और Manoj बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामलों में आए परस्पर विरोधी निर्णयों को देखते हुए निम्नलिखित प्रश्नों को बड़ी पीठ को भेजा है:

    1. क्या विभाजन वाद में पारित प्राथमिक डिक्री को राजस्व संहिता की धारा 209(f) के अधीन अंतरिम आदेश माना जाएगा या यह पक्षकारों के हिस्से तय करने वाला अंतिम रूप से अधिकारों को तय करने वाला आदेश है?

    2. क्या धारा 116 के अंतर्गत पारित प्राथमिक डिक्री के विरुद्ध धारा 207 के अंतर्गत अपील योग्य है?

    मामले की पृष्ठभूमि:

    प्रतिकारक नंबर 4 ने याची और अन्य प्रतिकारकों के विरुद्ध धारा 116 के तहत होल्डिंग (Holding) के विभाजन के लिए वाद दायर किया था। याची ने आपत्ति दर्ज कराई। इसके बाद अतिरिक्त सिटी मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, वाराणसी ने पक्षकारों के हिस्सों को निर्धारित करते हुए एक प्राथमिक डिक्री पारित की।

    इस डिक्री को चुनौती देने के लिए याची ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। प्रतिकारकों के वकील ने रिट की पोषणीयता पर आपत्ति जताई और कहा कि धारा 207 में अपील का प्रावधान है। जवाब में याची ने तर्क दिया कि धारा 209(f) के अनुसार प्राथमिक डिक्री के विरुद्ध अपील निषिद्ध है।

    याची की ओर से अमरजीत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य' मामले का हवाला दिया गया, जिसमें अदालत ने यह निर्णय दिया कि धारा 116 के तहत पारित प्राथमिक डिक्री धारा 209(f) के कारण अपील योग्य नहीं है।

    वहीं प्रतिकारकों की ओर से 'मनोज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य' मामले का हवाला दिया गया, जिसमें अदालत ने कहा कि प्राथमिक डिक्री के विरुद्ध अपील संभव है। अमरजीत मामला भिन्न तथ्यों पर आधारित होने के कारण यहां लागू नहीं होता।

    जस्टिस निगम ने इन दोनों फैसलों में विरोधाभास को देखते हुए उपर्युक्त कानूनी प्रश्नों को बड़ी पीठ को सौंप दिया ताकि इस विधिक भ्रम की स्थिति का स्पष्ट समाधान हो सके।

    केस टाइटल: अशोक कुमार मौर्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व 25 अन्य

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