महाकुंभ भगदड़ | संबंधित सामग्री रिकॉर्ड पर लाएं: लापता व्यक्तियों का विवरण मांगने वाली जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
13 Feb 2025 10:20 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिका याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट को निर्देश दिया। वकील ने 29 जनवरी को महाकुंभ (प्रयागराज) में भगदड़ के बाद लापता व्यक्तियों के विवरण एकत्र करने के लिए न्यायिक निगरानी समिति के गठन की मांग की थी। हाईकोर्ट ने कहा कि वह मामले के लिए भरोसा किए जा रहे सभी प्रासंगिक सामग्रियों को रिकॉर्ड पर लाए।
चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने वकील सौरभ पांडे से कहा कि वह राज्य सरकार को तभी बुला सकती है, जब रिकॉर्ड पर कुछ सामग्री हो।
चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से टिप्पणी की
“(जनहित याचिका याचिका का) आधार कहां है? सब कुछ व्यक्तिगत ज्ञान है। याचिका में उल्लेख किया गया कि रिपोर्ट हैं लेकिन कोई रिपोर्ट संलग्न नहीं है। रिकॉर्ड में कुछ होना चाहिए। राज्य से जवाब देने के लिए हमें कुछ सामग्री रिकॉर्ड में रखनी होगी।”
इसके अतिरिक्त अदालत ने नोट किया कि प्रैक्टिस कर रहे वकील ने जनहित याचिका दायर की, जबकि हलफनामे पर उनके क्लर्क ने शपथ ली। जवाब में वकील पांडे ने स्पष्ट किया कि जनहित याचिका याचिकाकर्ता महाकुंभ मेले में कल्पवास करते हुए मौजूद थे।
इसके अलावा वकील पांडे ने घटना से संबंधित समाचार पत्रों की रिपोर्ट और सोशल मीडिया वीडियो पेश करने के लिए समय का भी अनुरोध किया। इस अनुरोध के बाद अदालत ने मामले को 19 फरवरी को नए सिरे से सुनवाई के लिए पोस्ट किया।
सुनवाई के दौरान एडवोकेट पांडे ने प्रस्तुत किया कि राज्य सरकार महाकुंभ 2025 में बेहतर तकनीक के इस्तेमाल की बात करती है, जहां वे इस बारे में वास्तविक समय की जानकारी देते हैं कि कितने लोगों ने डुबकी लगाई, फिर भी उन्हें हताहतों की संख्या बताने में 18 घंटे लग गए।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि राज्य सरकार द्वारा गठित न्यायिक समिति की भूमिका सीमित है। यह केवल भगदड़ के कारणों और भविष्य में इसे कैसे नियंत्रित किया जाए इसका निर्धारण करेगा और इस बात का कोई संकेत नहीं है कि यह भगदड़ के बाद मरने वाले या लापता हुए लोगों का विवरण एकत्र करेगा या नहीं।
इसके अलावा, खंडपीठ को यह भी बताया गया कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि शवों को अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया और यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य ने मृतकों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या व्यवस्था की।
इस पर चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि मृतकों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने के लिए कई निर्णय हैं।
बता दें कि अपनी जनहित याचिका में याचिकाकर्ता ने उन विशिष्ट रिपोर्टों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया कि भगदड़ के पीड़ितों के शवों को भयावह स्थिति में रखा जा रहा है। कथित तौर पर उन्हें फर्श पर बोरियों में लपेटकर छोड़ दिया जाता है, जिसमें प्रशीतन की कोई व्यवस्था नहीं होती है जिससे वे सड़ जाते हैं।
भगदड़ 29 जनवरी की सुबह हुई थी जिसमें कथित तौर पर 30-39 लोग मारे गए। प्रभावित क्षेत्र संगम पवित्र स्नान स्थल था। न्यूज़ मिनट की ग्राउंड जांच रिपोर्ट में दावा किया गया कि मरने वालों की संख्या संभवतः 79 के करीब है।
यूपी सरकार ने 29 जनवरी की भगदड़ की जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर जज जस्टिस हर्ष कुमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया। पैनल ने घटना के बारे में जानकारी देने के लिए लोगों को आमंत्रित किया।