इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13 साल से अलग रह रहे जोड़े के तलाक का आदेश बरकरार रखा

Amir Ahmad

20 Jan 2024 12:14 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13 साल से अलग रह रहे जोड़े के तलाक का आदेश बरकरार रखा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस डोनादी रमेश की खंडपीठ ने कहा कि क्रूरता केवल शारीरिक प्रकृति की नहीं होनी चाहिए। मानसिक क्रूरता के मामले में जीवनसाथी के लिए वैवाहिक रिश्ते को जारी रखना असंभव हो सकता है।

    पत्नी द्वारा स्वीकार करने पर कि वे लगातार साथ नहीं रहे हैं, अदालत ने कहा,

    “हम पाते हैं कि इश्यू नंबर के अलावा अधिनियम की धारा 2 के तहत निचली अदालत ने माना कि यह अपूरणीय क्षति का मामला है, भले ही अधिनियम की धारा 13 (1) (IA) और (IB) की परिभाषा के अनुसार परित्याग साबित नहीं हुआ हो। माना जाता है कि दोनों को अलग-अलग रहते हुए कम से कम 13 साल बीत चुके हैं, जो अपने आप में अधिनियम की धारा 13 (1) (IA) के तहत क्रूरता है।”

    पूरा मामला

    मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार, दोनों पक्षकारों के बीच 2002 में हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार विवाह हुआ और पत्नी शादी के बाद कुछ समय तक अपने पैतृक घर पर रही। वह कुछ समय के लिए अपने पति के साथ रहने के लिए चली गई। उसके बाद अपने पैतृक घर वापस चली गई और फिर अपने पति से अलग शहर में सेवा में शामिल हो गई। शुरुआत में पत्नी अपने पति के साथ मुंबई चली गई, लेकिन आखिर में वह छोड़ कर चली गई।

    तलाक की याचिका में पति ने दावा किया कि उसके साथ मानसिक और शारीरिक क्रूरता की गई। उन्होंने दावा किया कि उनकी पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया और उनकी शादी पूरी तरह से टूट गई। हालांकि पत्नी ने लिखित बयान में मारपीट, प्रताड़ना और दहेज की मांग का आरोप लगाया और यहीं नहीं पत्नी ने आगे अडल्ट्री का आरोप लगाया।

    तलाक की कार्यवाही के दौरान, सुलह की कोशिश की गई। वहीं पत्नी अगली तारीख पर उपस्थित नहीं हुई थी, इसलिए यह माना गया कि उसे सुलह में कोई दिलचस्पी नहीं थी और निचली अदालत ने साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई। निचली अदालत ने माना कि अधिनियम की धारा 13 (1)(IA) (Cruelty) और (IB) (Dissertation) की परिभाषा के अनुसार परित्याग साबित नहीं होने पर भी विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया।

    कोर्ट ने यह भी माना कि पत्नी पति के खिलाफ विवाहेतर संबंध के आरोप साबित करने में असमर्थ है। अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी द्वारा लगाए गए शारीरिक उत्पीड़न के आरोप झूठे हैं। कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई और उसकी आंख की समस्या शादी से पहले से ही बनी हुई थी। तदनुसार, निचली अदालत ने माना कि पति के साथ मानसिक क्रूरता की गई।

    हाईकोर्ट का फैसला

    कोर्ट ने कहा कि 13 साल से अधिक समय तक अलग रहना अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता है।

    न्यायालय ने राकेश रमन बनाम श्रीमती पर भरोसा किया। इसके अतिरिक्त समर घोष बनाम जया घोष पर भी भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला करते हुए कहा,

    “जहां लगातार अलगाव की लंबी अवधि रही है, वहां यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वैवाहिक बंधन सुधार से परे है। कानूनी बंधन द्वारा समर्थित होने के बावजूद विवाह कल्पना बन जाता है। उस बंधन को तोड़ने से इनकार करके ऐसे मामलों में कानून विवाह की पवित्रता की सेवा नहीं करता है। इसके विपरीत यह पक्षकारों की भावनाओं और संवेदनाओं के प्रति बहुत कम सम्मान दर्शाता है। ऐसी स्थितियों में यह मानसिक क्रूरता को जन्म दे सकता है।”

    इसके अलावा राजीव कुमार रॉय बनाम सुष्मिता साहा पर भरोसा जताया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    “दोनों के अलग-अलग रहने का जो भी औचित्य हो, इतना समय बीत जाने के बाद कोई भी वैवाहिक प्रेम या स्नेह, जो दोनों पक्षकारों के बीच रहा हो, सूख गया है। यह विवाह के अपूरणीय विघटन का उत्कृष्ट मामला है।''

    समर घोष मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने माना कि निचली अदालत के समक्ष अनुचित उत्पीड़न और मानसिक क्रूरता स्थापित की गई, इसलिए तलाक सही था।

    केस टाइटल: चारु चुग उर्फ ​​चारू अरोड़ा बनाम मधुकर चुघ

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