मृतक किसान के छोटे-मोटे काम उसके परिवार को मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना के लाभ से वंचित नहीं करेंगे: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Amir Ahmad

17 Oct 2025 2:24 PM IST

  • मृतक किसान के छोटे-मोटे काम उसके परिवार को मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना के लाभ से वंचित नहीं करेंगे: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल इसलिए कि किसान अपनी मृत्यु के समय छोटे-मोटे काम कर रहा था, अपने आप में उसके परिवार को मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना के लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने सविता यादव नामक महिला द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके पति की आजमगढ़ जिले में एक ट्रक पर गेहूं की बोरियां लादते समय बिजली का झटका लगने से मृत्यु हो गई।

    जिला मजिस्ट्रेट ने उक्त योजना के तहत अनुग्रह राशि के लिए उसके दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसका पति एक ट्रक सह-चालक (खलासाई) था न कि किसान।

    खंडपीठ ने जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह पैरा संख्या 1 के उप-खंड (2) को ध्यान में रखते हुए नई रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद तर्कसंगत आदेश पारित करें। योजना से संबंधित सरकारी आदेश की धारा 2 का अवलोकन करें और यह पता करें कि क्या याचिकाकर्ता पट्टेदार के परिवार का कमाऊ सदस्य था और मृतक की आय का स्रोत कृषि कार्य था या नहीं।

    संदर्भ के लिए संबंधित सरकारी आदेश के पैराग्राफ संख्या 2 का उप-खंड (2) योजना के तहत भुगतान के लिए पात्रता मानदंड निर्धारित करता है।

    याचिकाकर्ता के पति जो खलासी सह-चालक के रूप में कार्यरत थे की गेहूं की बोरियां लादने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लोहे की छड़ के बिजली के तार के संपर्क में आने से मृत्यु हो गई।

    उन्होंने राज्य सरकार की योजना के तहत वित्तीय राहत मांगी। उनकी पिछली रिट याचिका के कारण 2 मार्च, 2023 को हाईकोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे एक प्रतिकूल राजस्व रिपोर्ट से प्रभावित हुए बिना उनके आवेदन पर विचार करें, जिसमें उनके पति की आय को गलत तरीके से गैर-कृषि के रूप में वर्गीकृत किया गया।

    इसके बावजूद ज़िला मजिस्ट्रेट ने (मार्च, 2023 में) उसके दावे को फिर से खारिज कर दिया यह कहते हुए कि मृतक कृषक नहीं बल्कि एक ट्रक सह-चालक था।

    खंडपीठ ने कहा कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने हाईकोर्ट की पिछली टिप्पणियों पर विचार नहीं किया और उचित कारण बताए बिना दावे को खारिज कर दिया।

    खंडपीठ ने आगे कहा कि विवादित आदेश में इस बात की जांच नहीं की गई कि क्या मृतक उस परिवार का कमाने वाला था, जिसकी आय कृषि से प्राप्त होती थी, जैसा कि 28 फ़रवरी, 2020 के सरकारी आदेश के पैराग्राफ 2 के खंड (2) के तहत अपेक्षित है।

    संदर्भ के लिए उक्त प्रावधान कृषक शब्द को इस प्रकार परिभाषित करता है:

    (1) खातेदार या सह-खातेदार जिनका नाम राजस्व रिकॉर्ड या तहसील के खतौनी में दर्ज है।

    (2) भू-स्वामी या सह-भू-स्वामी का कोई कमाने वाला पारिवारिक सदस्य जिसकी आजीविका का मुख्य स्रोत भू-स्वामी या सह-भू-स्वामी के नाम पर दर्ज भूमि से होने वाली कृषि आय पर आधारित हो।

    (3) कोई अन्य भूमिहीन व्यक्ति जिसने भूमि पर कृषि कार्य करने के लिए पट्टे या बटाई (किराए) के माध्यम से भूमि प्राप्त की हो और पट्टाधारक जिनमें असामी पट्टाधारक सरकारी पट्टाधारक या निजी पट्टाधारक शामिल हैं।

    उक्त प्रावधान को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता घटना के समय खलासी के रूप में काम कर रहा था इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अपने पिता के खेत में किसान के रूप में कार्यरत नहीं था। खेती के मौसम के बाहर लोगों को छोटे-मोटे काम करते हुए देखना बहुत आम बात है। केवल इस कारण से वह योजना के लाभ से वंचित नहीं हो जाता।"

    हाईकोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को अपने पति के कृषि कार्य में संलग्न होने के सहायक दस्तावेजों के साथ एक नया व्यापक अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाए।

    खंडपीठ ने जिला मजिस्ट्रेट आजमगढ़ को सरकारी आदेश के प्रासंगिक प्रावधानों के आलोक में एक नई रिपोर्ट प्राप्त करने और यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या मृतक काश्तकार के परिवार का कमाने वाला था और क्या उसकी आय का स्रोत कृषि था।

    इसके बाद याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देने के बाद अधिमानतः आठ सप्ताह के भीतर एक तर्कसंगत और स्पष्ट आदेश पारित किया जाना चाहिए।

    इन निर्देशों के साथ रिट याचिका को अनुमति दी गई।

    Next Story