इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा आदेश- जेंडर-चेंज सर्जरी के बाद ट्रांसजेंडर व्यक्ति के नाम और जेंडर के साथ नई शैक्षिक प्रमाणपत्र जारी करने का दिया निर्देश
Amir Ahmad
10 Nov 2025 3:24 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में माध्यमिक शिक्षा परिषद बरेली के उस आदेश को निरस्त कर दिया ,जिसमें एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के शैक्षिक दस्तावेज़ों में नाम और जेंडर संशोधन करने से इनकार कर दिया गया था।
अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 एक विशेष कानून है और इसकी धाराएं अन्य मौजूदा कानूनों के अतिरिक्त लागू होती हैं न कि उनके विपरीत। इसलिए परिषद द्वारा संशोधन से इनकार करना विधि-विरुद्ध है।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की सिंगल बेंच ने यह आदेश शरद रोशन सिंह की याचिका पर दिया, जिन्होंने जेंडर-अफर्मिंग सर्जरी के बाद शैक्षिक दस्तावेज़ों में अपने नाम और जेंडर संशोधन की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने 2019 अधिनियम की धारा 6 और 7 तथा 2020 नियमों के तहत आवश्यक प्रमाणपत्र मिलने के बाद शिक्ष विभाग से परिवर्तन की मांग की थी।
माध्यमिक शिक्षा परिषद के क्षेत्रीय सचिव ने अप्रैल, 2024 में याचिका अस्वीकार करते हुए कहा था कि इतने देर से शैक्षिक दस्तावेज़ों में नाम बदलने की कोई प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है और 2019 का अधिनियम इस मामले में लागू नहीं होता।
हाईकोर्ट ने इस तर्क को कानून के विपरीत और अस्थिर बताया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि अधिनियम 2019 की धारा 20 बताती है कि कानून अन्य सभी मौजूदा विधानों के अतिरिक्त प्रभावी होता है। साथ ही नियम 5(3) और अनुलग्नक-1 का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने सभी आधिकारिक दस्तावेज़ जिनमें स्कूल, बोर्ड, यूनिवर्सिटी या अन्य किसी शैक्षणिक संस्थान द्वारा जारी प्रमाणपत्र शामिल हैं में नाम, जेंडर और फोटो बदलवाने का अधिकार रखता है।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के कई पूर्व निर्णयों का भी उल्लेख किया, जिनमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और अधिनियम की सख्त पालना पर जोर दिया गया।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जेन कौशिक बनाम भारत संघ (2025) मामले का भी हवाला दिया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार द्वारा समावेशी नीतियां बनाने में असफलता न केवल प्रशासनिक त्रुटि है बल्कि यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।
अंततः हाईकोर्ट ने परिषद का आदेश रद्द करते हुए यूपी सरकार और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 2019 अधिनियम और 2020 नियमों के अनुरूप याचिकाकर्ता के आवेदन पर कार्रवाई करें और आवश्यक सभी बदलाव कर आठ सप्ताह के भीतर संशोधित प्रमाणपत्र एवं अंकपत्र जारी करें।

