प्रोबेशनर की सेवाएं समाप्त करना बर्खास्तगी या निष्कासन नहीं, जब तक कि यह चरित्र या ईमानदारी पर सवाल न उठाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
26 March 2025 8:16 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि प्रोबेशनर की सेवा समाप्ति का आदेश न तो बर्खास्तगी का आदेश है और न ही निष्कासन, जब तक कि उसके चरित्र या ईमानदारी के विरुद्ध कुछ न हो जो इसे दंड का आदेश बनाता है।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा,
"यह अच्छी तरह से स्थापित है कि रोजगार के नियमों के तहत या संविदात्मक अधिकार के प्रयोग में किसी प्रोबेशनर की सेवाओं की समाप्ति न तो बर्खास्तगी है और न ही निष्कासन। हालांकि अगर आदेश कर्मचारी के चरित्र या ईमानदारी के विरुद्ध है तो यह दंड के रूप में एक आदेश होगा भले ही कर्मचारी केवल प्रोबेशनर हो या अस्थायी।"
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
2006 में याचिकाकर्ता को प्रोबेशन पर प्रतिवादी संस्थान में सहायक अध्यापक, व्यायाम के रूप में नियुक्त किया गया। उनकी परिवीक्षा अवधि एक वर्ष के लिए बढ़ाकर 2008 तक कर दी गई। 2007 में जब याचिकाकर्ता को वेतन नहीं दिया जाने लगा तो उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि रिट याचिका को निष्फल बताकर खारिज कर दिया गया। इस बीच उन्हें आरोप पत्र जारी किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने संस्था के लिए हानिकारक गतिविधियों में भाग लिया था और बार-बार अनुरोध के बावजूद उन्होंने अपने कार्यों को नहीं सुधारा।
याचिकाकर्ता ने अपना जवाब प्रस्तुत किया, जिसे असंतोषजनक मानते हुए खारिज कर दिया गया। इसके बाद संस्था के प्रबंधक ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 8 आरोप लगाते हुए दिनांक 08.10.2007 को एक आरोप पत्र प्रस्तुत किया। जवाब प्रस्तुत करने के बाद याचिकाकर्ता को जांच समिति के समक्ष उपस्थित होना आवश्यक था। जांच समिति ने याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सही पाया और उनकी सेवाएं समाप्त करने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद 20.11.2007 को जांच रिपोर्ट की एक कॉपी के साथ याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।
26.11.2007 को याचिकाकर्ता की सेवाएं 03.01.2008 (उसकी परिवीक्षा अवधि की समाप्ति) से समाप्त कर दी गईं। इस समाप्ति आदेश को याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चुनौती दी थी।
जिस पद पर याचिकाकर्ता कार्यरत था, उसे भरने के लिए विज्ञापन को भी उसने चुनौती दी। इसके बाद उक्त पद पर वलीउज्जमां खान नामक व्यक्ति की नियुक्ति की गई, जिसने वेतन न मिलने पर प्रबंधन समिति के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दोनों रिट याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की गई।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय ने पाया कि यद्यपि परिवीक्षाधीन व्यक्ति की सेवाओं का विस्तार संतोषजनक सेवा के आधार पर होता है लेकिन याचिकाकर्ता के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई, क्योंकि उसके खिलाफ कुछ आरोप थे।
न्यायालय ने कहा,
"यदि उसकी सेवाएं असंतोषजनक पाई जाती हैं तो जांच किए बिना भी परिवीक्षाधीन व्यक्ति की नियुक्ति को रद्द किया जा सकता है।"
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के वकील ने यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं दिखाया कि सहायक अध्यापक व्यायाम के रूप में याचिकाकर्ता के कार्यकाल के दौरान खेलों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
न्यायालय ने माना कि आरोप पत्र प्रस्तुत करने के चरण के दौरान प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन किया गया। हालांकि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे जांच रिपोर्ट जारी नहीं की गई। उसे इसका जवाब दाखिल करने का समय नहीं दिया गया। न्यायालय ने प्रबंधन समिति द्वारा अपने जवाबी हलफनामे में दिए गए कथनों पर ध्यान दिया, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता को जांच रिपोर्ट की एक प्रति दी गई और उसका जवाब मांगा गया।
यह कहा गया कि याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया गया, जिसका उसने लाभ उठाया, न्यायालय ने उसकी उपस्थिति का सबूत नोट किया। न्यायालय ने कहा कि सुनवाई का अवसर दिए बिना परिवीक्षाधीन की सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं, न्यायालय ने माना कि इस मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का विधिवत अनुपालन किया गया और याचिकाकर्ता को अपना बचाव प्रस्तुत करने का पर्याप्त अवसर दिया गया।
“उपर्युक्त परिस्थितियों में तथा आरोपों को ध्यान में रखते हुए, जो इस बात पर आधारित हैं कि याचिकाकर्ता अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी लगन से नहीं कर रहा था तथा खेलों के स्तर में न तो सुधार हुआ था और न ही कॉलेज के स्टूडेंट्स को प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। न्यायालय का विचार है कि जिस आदेश के तहत परिवीक्षा अवधि नहीं बढ़ाई गई तथा सेवा समाप्त कर दी गई उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।”
न्यायालय ने माना कि वलीउज्जमां खान को सहायक अध्यापक व्यायाम के रूप में नियुक्त करने पर कोई रोक नहीं है तथा तदनुसार उनकी अंतरिम नियुक्ति को निरपेक्ष माना जाता है।
केस टाइटल: संजय कुमार सेंगर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा अन्य [रिट - ए संख्या - 63857/2007]